कृपया साक्षी भाव को स्पष्ट करें ?
उत्तर :मनुष्य का अर्थ है जिसके पास मन है .अर्थात सोचने की क्षमता ,विचार करने की क्षमता .
पशु के पास विचार करने की योग्यता नहीं होती है ,उसके पास मन नहीं है .
इस विचार शक्ति के कारण मानव ने समाज ,विज्ञान,उद्योग ,विज्ञान ,भाषा ,भवन ,सारा नया संसार रच दिया .
यह विचार शक्ति या मन मनुष्य के लिए समस्या बन गया है ,क्योंकि विचार क्रिया अनियंत्रित ,एक आदत होगी है
जो रुकने का नाम नहीं लेते है .जो हमारे दुखों का कारण है .मन ही दुःख व बंधन का कारण है.
ऋषि ,मुनि ,बुद्ध पुरुष या आत्मज्ञानी पुरुषों ,ने अपने अनुभव से यह घोषणा की कि इस मन के परे,विचार के ऊपर
चेतना का एक और स्तर है जिसे आत्मा या साक्षी कहते है .साक्षी चेतना मन से मुक्त है .साक्षी चेतना का यह गुण है कि
वह विचार करने में भी समर्थ है ,विचार शक्ति से युक्त भी है और विचार से मुक्त भी है ,निर्विचार भी है .
विचारों के ,मन के दृष्टा को ,साक्षी कहते है .जब हम विचार को देखते है तब हम साक्षी होते है ,दृष्टा होते है.
जब हम सिर्फ विचार करते है ,तब हम मन या विचारक होते है.
आप जब निर्विचार है तब आप साक्षी है .शब्द रहित आत्म बोध ,”मैं हूँ ” के बोध को साक्षी कहते हैं .
उदहारण के लिए जब आप एक फूल[अथवा किसी दृश्य] को निर्विचार होकर देखते है तब आप साक्षी है .
अथवा जब आप किसी फूल या दृश्य को देखते है तब आपके अंदर उस फूल के बारे में मन में प्रतिक्रिया उठती है की यह गुलाब
का फूल है ,तब आप उस प्रतिक्रिया ,विचार को भी देखे तो यह हुआ साक्षी .साक्षी का अर्थ है आप दृश्य और दृष्टा दोनों को जान रहे है .आपकी शुद्ध सत्ता साक्षी है .