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pinjre ke panchi re tera dard na jane koi

kabir

Kabir ke Shabd

पिंजरे के पँछी रे, तेरा दर्द न जाने कोय।।
बाहर से तूँ चुप रहता, और भीतर भीतर रोए।।
कह ना सके तूँ अपनी कहानी, तेरी भी पँछी क्या जिंदगानी रे।
विधि ने तेरी खता लिखी, अंसुवन में कलम डुबोयें।।
चुपके चुपके रोने वाले, रखना छुपा के दिल के छाले रे।
ये पत्थर का देश है पगले, कोए ना तेरा होय।।
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