लोग भविष्य के लिए ज्यादा चिंतित रहते हैं। क्या भविष्य को भाग्य के सहारे छोड़ देना चाहिए?
মৃष्टि की रचना जब से हुई, तब से लेकर आज तक मनुष्य अपने गविव्य को जानने के प्रति काफी जिज्ञासु रहा है और यह जिज्ञास, भविष्य में आने चाली संतानों में भी रहेगी। इसी भविष्य की जानकारी के लिए अनेक विद्यायें भी प्रकाश में आयीं जैसे हस्तरेखा. अंक ज्योतिष, जन्म कुंडली से भविष्य फल आदि। फिर भी भविष्य एक अनसुलझी पहेली की भांति है। कुछ लोग कहते हैं-
People are more concerned about the future. Should the future be abandoned with the help of luck? |
कि भविष्य कर्म के अनुसार बनता है। कुछ लोग कहते हैं कि भविष्य कर्म के अनुसार बनता-विगड़ता है। इस संदर्भ में कृष्ण जी ने गीता के उपदेश में कर्म को प्रधान बताया है तो तुलसीदास जी ने रामायण में यह लिखा है- कर्म प्रधान विश्व रचि रा्खा।
लेकिन वहीं भगवान कृष्ण ने जब कुंती से कर्म प्रधानता की व्याख्या की तब कुंती ने कहा-हे केशव! यह मानती हूं कि संसार । कर्म प्रधान है। कठोर परिश्रम एवं पुरुषार्थ से सब कुछ पाया ज सकता है, किन्तु कई बार भाग्य के सामने पुरुषार्थ एवं विद्या दोन निष्फल हो जाते हैं।
अब प्रत्यक्ष ही देख लो, विद्वानों में महा विद्वा मेरा पुत्र युधिष्ठिर है जिसे लोग धर्मराज कहते हैं, महावीर भी धनुर्धारी अर्जुन और नकुल सहदेव जैसे पुत्रों के होते हुए भी दुर्बुि एवं कावर दुर्योधन हस्तिनापुर पर वह जल भुनकर राख हो जाये