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ज्ञान के मोती – मनुष्यों के पास सबसे उच्च श्रेणी की बुद्धि है – Pearls of Knowledge – Humans have the highest class of intelligence !!!

ज्ञान के मोती

मनुष्यों के पास सबसे उच्च श्रेणी की बुद्धि है!!!

आप जानते हैं, हम तत्व और आत्मा, दोनों से बने हैं| हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट, खनिज पदार्थ, प्रोटीन आदि से बना है और हमारी आत्मा शुद्ध ऊर्जा से; प्रेम, सहानुभूति, आकर्षण शक्ति से बनी है| यह सब ऊर्जा के स्वभाव हैं| प्राचीन समय में, लोग इसे दो शब्दों द्वारा कहते थे प्रकृति, और पुरुष अर्थात ऊर्जा; दो चीज़ें, चेतना और तत्व| पर फिर, एक कदम और आगे जायें तो वे कहते थे, कुछ भी दो नहीं है, सब एक ही हैं| ऊर्जा और तत्व दो अलग चीज़ें नहीं हैं| मन और शरीर अलग नहीं हैं, सब एक ही हैं|
परन्तु, चेतना चार प्रकार से काम करती है; एक चेतना के चार काम हैं, जैसे एक व्यक्ति, जब दफ्तर जाता है तो वो अफसर है, बाजार जाता है तो खरीददार या व्यापारी, और वही व्यक्ति कक्षा में विद्यार्थी है| है न? और घर पर वह एक पिता या पति या बेटा या कुछ और होता है| वह विभिन्न भूमिकाएं निभाता है| इसी तरह, यह एक चेतना चार महत्वपूर्ण कार्य करती है|
पहला है मन| क्या आप सब यहाँ हैं? सुन रहे हैं? यदि आप यहाँ हैं और आपका मन कहीं और है तो आप सुन नहीं सकते| आपके कान खुले हैं पर यदि आपका मन कहीं और है तो आप सुन नहीं सकते| क्या आप मुझे देख रहे हैं? यदि आप यहाँ हैं, आपका मन कहीं और है, तो चाहे आपकी आँखें मुझे देख रही हों, आप मुझे नहीं देख रहे| तो मन चेतना का वह पहलू है जिससे हमारी इन्द्रियाँ अनुभव करती हैं| यह सब जीवों में होता है| काकरोच का मन उसके एंटीना में होता है| एक लंबे से एंटीना से वे महसूस करते हैं|
जैसा मैंने पहले कहा, मन शरीर में नहीं है, शरीर मन में है| जैसे लौ बाती के चारों ओर है| है न? शरीर दिए की बाती की तरह है, और मन लौ कि तरह| कभी कभी किर्लियन और छायाचित्रण द्वारा आप प्रभामंडल देख भी सकते हैं| तो मन शरीर के भीतर और उसके चारो ओर है| फिर भी, मन ही एहसास है, कानों से, आँखों से, स्पर्श से, गंध से| तब हम उसे मन कहते हैं| और फिर, वहीँ चेतना, यह सब एहसास करने के बाद उसे बाँट देती है| यह अच्छा है, यह अच्छा नहीं है, यह सुन्दर है, यह कुरूप है, यह सही है, यह गलत| यह बुद्धि है जो चेतना की एक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| बुद्धि एक एहसास और समझ है, जो कि परखने, भेदभाव करने का और समझाने का काम करती है|
क्या आप अभी “हाँ” कह रहे हैं? यह बुद्धि है| क्या आप कह रहे हैं, “नहीं, मैं नहीं मानता”? कोई बात नहीं, आप कह सकते हैं “मैं नहीं मानता” पर यदि आप जानते हैं कि आप वह कह रहे हैं, तो वह बुद्धि है और यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम है|
मनुष्यों के पास सबसे उच्च श्रेणी की बुद्धि है| यह एक भेंट है|
पुराने समय का एक बहुत ही पवित्र मंत्र है, गायत्री मंत्र| यह कहता है, “यह बुद्धि किसी ऐसी चीज़ से प्रेरित हो, जो बुद्धि से परे है; दिव्यता| यही प्रार्थना है, “मेरी बुद्धि प्रभु से प्रेरित हो”| अर्थात मेरे मन में शुद्ध विचार आने दो, उपयुक्त निर्णय आने दो मेरी बुद्धि द्वारा, मेरे अंदर अंतर्बोध आने दो, ताकि मैं जो भी करूं वो उत्तम हो जाये|
बुद्धि ही है जो रुकावट बनती है; बुद्धि ही शक पैदा करती है, जो गलत विचार देती है और अंतर्बोध को ढक देती है|
मान लो आपमें अच्छा अंतर्बोध है, और आप स्वीडन में किसी से मिलना चाहते हैं, और आप कहते हैं, “ठीक है, मैं इस व्यक्ति से मिलूँगा”| आपकी नीयत सही है पर आपकी बुद्धि बीच में आ कर बोलती है, “नहीं, यह शायद संभव न हो, हम यह नहीं कर पाएंगे”| तो आपकी बुद्धि आपके अंतर्बोध को ढक देती है| और ऐसे में हम गलतियां कर देते हैं|आप सोचते हैं यह व्यक्ति अच्छा है, यह व्यक्ति अच्छा नहीं है| यह आवश्यक नहीं कि यह सब निर्णय सही हों, जब आपकी बुद्धि आपके अंतर्बोध से या भीतरी चेतना से कटी हो| इसे चित्त कहते हैं|
तो मन, बुद्धि, और फिर स्मृति| हमारा मन काफी समय स्मृतियों में अटका रहता है|आप कुछ भी अच्छा देखते हैं तो आपको अतीत में देखा हुआ कुछ याद आ जाता है| कुछ भी भद्दा देखते हैं, तो अतीत का कुछ भद्दा दृश्य याद आ जाता है| तो मन स्मृतियों में कैद हो जाता है या यदि आपकी स्मृतियाँ हावी हो रही हों तो ऐसा होता है| स्मरणशक्ति बहुत महत्वपूर्ण है| यह तीसरी भूमिका है|
फिर है अहम; मैं हूँ| चौथी भूमिका|
यह एक चेतना के चार कार्य या भूमिकाएं हैं| पर फिर भी, यह इन चारों से भी परे है| इसीलिए इसे महत्, अर्थात महान कहते हैं| यदि आप अहम के आगे जा पाएं, तो वो अविकारी है; जो सर्वव्यापी है पर कहीं भी नहीं है| आप उसका अनुभव करते हैं और तब आप महत् बनते हैं| एक महात्मा बनते हैं|
आपने महात्मा गाँधी के बारे में सुना है? उन्हें महात्मा की पदवी लोगों ने दी थी| हर संत को महात्मा कहा जाता है, अर्थात वे अहम के आगे चले गए हैं| वो मन, बुद्धि, स्मरण, अहम से एक कदम आगे महत् तक चले गए| वे सबके साथ सहज महसूस करते हैं| यह ज्ञानोदय है ; जहाँ आप सब के साथ सहज महसूस करते हैं; आप के लिए कोई भी पराया नहीं है| आप एक बच्चा बन कर उसी क्षण में जीने लगते हैं| आप को कुछ आहत नहीं करता, सब कुछ आपका हिस्सा है; बड़प्पन और पूर्ण शान्ति| आप बस यह नहीं कहते कि शरीर आपका है, बल्कि आप सब जगह हैं| यह केवल एक भाव व्यक्ति है| देखो, आप जब टी वी देखते हैं, आप एक चैनल देखते हैं, या बी बी सी चैनल देखते हैं| हालांकि आप बी बी सी उस छोटे से टी वी में देख रहे हैं, क्या बी बी सी केवल उस डब्बे में ही है? नहीं| बी बी सी चैनल, उसकी तरंगें सारे कमरे में हैं, सब जगह हैं| यदि आप टी वी बंद भी कर दें, फिर भी बी बी सी की तरंगें सब जगह हैं| पर टी वी उन्हें सही तरीके से व्यक्त कर हमारे लिए दिखाता है|
इसी तरह, हमारे शरीर भी टी वी के डब्बों जैसे हैं| आप मेरे साथ हैं? आपका शरीर एक टी वी बॉक्स है| आपकी चेतना उस चैनल की तरंगें| तो, आप बी बी सी हैं, वह सी एन एन हैं, वह व्यक्ति फोक्स चैनल है और एक और व्यक्ति मनोरंजन चैनल है| हर किसी की अपनी तरंग दूरी है पर इसका अर्थ यह नहीं है कि हम बस यहीं अटके हैं| यह तो केवल एक तरंगे पाने या भेजने का यन्त्र है पर तरंगें हर ओर हैं| क्या आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ?
जैसा मैंने कल कहा, शुद्ध ज्ञान है और व्यावहारिक ज्ञान है| हमें दोनों की आवश्यकता है; ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं| इस एक चेतना को जानना, “मैं यह हूँ”, शुद्ध ज्ञान है| और यह जान कर तनाव मुक्त होना ध्यान है, योग है| अपने “आप” से मिलना योग है| यह किसी ऐसे से मिलना नहीं है जो आप नहीं हैं| यह बस अपने आप में वापस लिपट जाना है, पुनार्मिलाप| इस चक्र को पूरा करना ही योग है|
बचपन में आप सब योगी थे| हर बच्चा एक योगी है| हम सब योग आसन करते थे, वर्तमान में जीते थे, और हमारा दिमाग हमेशा ताज़ा और जागरूक होता था| हम इतने जुड़े हुए महसूस करते थे सब कुछ से, और घर पर, एक दम प्रेम से भरे| और फिर आगे चल कर कहीं, हम अपने मन के बाहर, बाहर जाते गए|
एक उपनिषद में ऋषि कहते हैं, “भगवान ने बहुत बड़ी गलती कर दी सारे इन्द्रियों को बाहर की और केंद्रित कर के| हमारी इन्द्रियाँ केवल बहार की ओर जाती हैं| पर कभी कभी कुछबहादुर लोग होते हैं जो इन्हें भीतर की ओर केंद्रित कर पाते हैं और सत्य तक पहुँच पाते हैं”| और यही योग है वे कहते हैं|
और यह कितना सत्य है! हमारा मन बाहर की ओर जाने के लिए बना है| पर कभी कभी आपको भीतर की ओर भी जाना चाहिए| अब अधिक से अधिक व्यक्ति सीख रहे हैं और अधिक बुद्धिमान बन रहे हैं| वह जानते हैं कैसे अपने भीतर की ओर मुड़ें और शान्ति को अपने अंदर पायें, ना कि बाहर|
तो हर बच्चाएक योगी है और हम सब योगी की तरह ही पैदा होते हैं| कहीं हम वह भोलापन खो चुके हैं| उसमे वापस जाने के लिए, हम यह सब व्यायाम, ध्यान आदि करते हैं, उसी सहजता को ढूँढने, उसी भोलेपन को, जो हम हैं| अब, उसे पाने के बहुत से उपाय हैं| अभी मैं विस्तार में नहीं जाऊँगा|
जो एक अभ्यासी को प्रभावित करेगा वह है वातावरण| एक बेहतर, शांत वातावरण अच्छा है| और भोजन पर भी ध्यान देना अच्छा है, भोजन का असर मन पर पड़ता है| आयुर्वेद एक महान विज्ञान है जो बताता है किस प्रकार का भोजन किस तरह के लोगों के लिए ठीक रहता है| आपका वात, पित्त, और कफ क्या है और कैसा भोजन आपके लिए अच्छा है| इस बारे में एक पूरा विज्ञान है|
जैन धर्म ने भोजन पदार्थों पर बहुत अनुसंधान किया है| पर यह अंतहीन है| यदि आप विस्तार में जायेंगे, तो आप कुछ और नहीं कर सकते, बस अपने भोजन का ही ख्याल करते रह जायेंगे| इस लिए, मैं कहूँगा कि हमें चरम सीमा तक नहीं चले जाना चाहिए|
हमें संतुलित रहना चाहिए|
एक ओर ऐसे लोग हैं जो परवाह नहीं करते कि वे क्या खा रहे हैं, बस सब कुछ अपने पेट में ठूस लेते हैं और फिर दुखी होते हैं| दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जो इतना छांटते रहते हैं, “ओह, इसमें चीनी है, मैं यह नहीं खा सकता, वो नहीं खा सकता” और दिन रात वो परेशान रहते हैं केवल खाने को लेकर| यह भी ठीक नहीं है क्योंकि आपके शरीर के पास अपरिमित लचक और अनुकूलनशीलता है| इस लिए, यदि आप सोचोगे यह चीज़ कभी मेरे लिए अच्छी नहीं है और उसे कभी नहीं खाओगे तो आपका शरीर भी ऐसे ही काम करने लगेगा| आपका शरीर लचक खो देगा|
उसी तरह, यदि आप बहुत से स्फूर्तिदायक पदार्थ या दवाईयां खाते रहेंगे वो भी अच्छा नहीं है| यह सब कभी कभी सेवन करने के लिए ठीक हैं| लोग मेरे लिए इतने सारे स्फूर्तिदायक पदार्थ लाते हैं| यदि आप मेरा बक्सा देखेंगे तो इतने सारे ऐसे पदार्थ पायेंगे| पर मैं ये सब प्रतिदिन नहीं उपयोग करता| कभी मैं यह पदार्थ लेता हूँ, कभी वो|
लोग कहते हैं एन्जाइम और खनिज पदार्थ बहुत अच्छे होते हैं| हाँ ये अच्छे होते हैं पर मैं मानता हूँ कि हमें बहुत से ऐसे पदार्थ नहीं लेने चाहियें| ये सब आवश्यक हैं क्यों कि आजकल जैसे खाने की चीज़ें उगाई जाती हैं वो बहुत बदल गया है| यह ऐसा नहीं है जैसे पहले खाने की चीज़ें उगाई जाती थी|
मैंने पढ़ा था कि आजकल केलों में १/१२ पोषक तत्व है उन्नीसवीं सदी के मुकाबले| तो, चाहे अब फल और सब्जियां ज़्यादा उगाई जाती हैं और बड़ी बड़ी होती हैं, उनके पोषक तत्त्व बहुत ही कम हैं| ये सब जैविक रूप से नहीं उगाए जा रहे, और मिटटी खोखली होती जा रही है|
देखो, गेहूं का नया बीज जो हम खाते हैं, उसमे इतना फोलिक एसिड नहीं है जितना पहले होता था पुराने गेहूं में| भारत में एक वैज्ञानिक ने शोध किया था| उसने कुछ पुरानी गेहूं जाँची, और कहा इसमें अत्यधिक फोलिक एसिड है| आज लोग ह्रदय रोग से पीड़ित हैं क्योंकि भोजन में पर्याप्त मात्रा में फोलिक एसिड नहीं है| तो सेहत बनाने वाले ऊपरी पदार्थ आवश्यक हैं| पर इनके साथ बंध जाना, इनके बारे में अत्यधिक चिंता करना उचित नहीं है| हमारा मस्तिष्क, हमारा शरीर काफी कुछ खुद पैदा कर सकता है| तो भोजन का असर होता है, पर आपकी चेतना भोजन से भी ज़्यादा शक्तिशाली है|
प्रश्न : गुरुजी,इस ब्रम्हाण्ड मेंसर्वशक्तिमानकौन है?
श्री श्री रविशंकर :जो सबसे सहज है वहीँ सर्वशक्तिमानहै| अच्छा देखो, परमाणु तो सब जगह है| सारा ब्रम्हाण्डपरमाणुओंसेघिराहै| सब कुछ परमाणुसे बना है लेकिन परमाणुशक्ती केंद्र अलग होता है| इसीप्रकारसर्वशक्तिमानभी सबसे सरल, सबसे अधिक उपलब्ध औरसबसे अल्पमूल्य वस्तु है|आप उसको वस्तु भी नहीं कह सकते, वह सबके अस्तित्व का आधार है| वह कहीं ऊपर आसमान में नहीं है| वह एक रिक्त स्थान की तरह है, एक मैदान के जैसा| यह ऐसा ही है जैसेआप मुझसे पूछो कि पृथ्वी का चुम्बकीयक्षेत्र कहाँ है?वह सब जगह है! वह उसचुम्बकीय क्षेत्र से भी ज्यादा सूक्ष्म है जो सब जगह विद्यमान है, सब समयोंमें उपस्थित है और समान प्रचंडता के साथ है| ऐसा नहीं है कि सर्वशक्तिमान वहां कहीं है|उसकोसर्वशक्तिमान कहनेके स्थान पर हमको उसे मूलतत्व कहना चाहिए, वह जोसबके अस्तित्व का आधार है| जैसे की प्राचीन काल के लोग उसे कहते आये है;अस्तित्व|सत, “जो है”और चित्त जो चेतना है और आनंद है| आप इससर्वशक्तिमान के परमानन्द का या इस ब्रम्हाण्ड केआधार का अनुभव कैसे कर सकते हैं? मौन में रह कर और अपने मन को अंतर्मुखीबना कर| अभ्यास से आनंद ऊपर उठ कर आता है|

प्रश्न : गुरुजी, क्या चाँद सितारे और दिव्य शक्तियाँ मन कोप्रभावित करती हैं? अगर हाँ तो कैसे?
श्री श्री रविशंकर : हाँ !क्या आप यह जानते हैं कि चाँद समुद्र कोप्रभावित करता है? पूर्णिमा के दिन समुद्र में लहरें ऊँची होती हैं| चाँद पानीको प्रभावित करता है यह तो सबको पता है| हमारा शरीर पानी से बना है| हमारे शरीरका ६० %पानी से बना है और इसमें समुद्र की तरह ही लवणीय तत्व है|हमारा शरीरएक छोटे समुद्र के पानी केसंग्रह की तरह है और आप एक समुद्र के पानी की थैली हो| अगर तुम्हारे शरीर से द्रव्य निकाल दिया जाए तो तुम सिकुड़ जाओगे| तुम एक समुद्रके पानी की थैली हो| कहीं पर लाल और कहीं पर नीली, और कहीं पर किसी और रंग की, सबकुछ एक ही थैली में है| क्योंकि हमारा शरीर ६० %पानी है इसलिए चाँद का हमारे ऊपरअसर होता है|जो कुछ भी शरीर को प्रभावित करता है वह मन को भी प्रभावित करता है|इसलिएचाँदमन को प्रभावित करता है| इसीलिए जो लोग पागलहो जाते है उनको उन्मत्त कहते हैं| देखो यह उर्जा का क्षेत्र बहुत ही रोचक है| अगरआप रेडियो के अन्दर देखोगे तो पाओगे कि कुछ तार एक धातु के टुकड़े पर एक आकार मेंलगे होते है लेकिन उससे कितना परिवर्तन आ जाता है, है की नहीं? आपने कभी सेल फ़ोनके अन्दर की चिप को देखा है? उसकी अपनीएकआकृति है| अगर सेल फ़ोन की चिप अलग है तो वह अलग नंबर को दर्शाती है| हर एक छोटे से छोटीआकृति एक इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा और स्पंदन को दर्शाती है| उसी प्रकार से हमारा शरीरभी एक इलेक्ट्रोनिक परिपथ है और इसका इस सारे जगत से एक नाता है| इस जगत में सबकुछ एक दुसरे से जुड़ा है और एक दूसरे से सम्बंधित है|
प्राचीन लोगों को यह पता था| यह इतना आश्चर्यजनक है कैसे वह ब्रम्हाण्ड को सूक्ष्म से जोड़ते थे| सूर्य हमारी आँखों से जुड़ा है| मस्तिष्क चाँद से जुड़ा है| मंगल ग्रह जिगर से जुड़ा है| शनि गृह दांतों से जुड़ा है|
जैसे मंगल ग्रह आपके जिगर से जुड़ा है, आपकी नींद से जुड़ा है, और चने से जुड़ा है| मंगल ग्रह, चने, भेड़, बकरी और जिगर सब आपस में जुड़े हैं| तो उन्होंने इन सब तत्वों के बीच में एक रिश्ता पाया; ब्रम्हाण्ड से सूक्ष्म जगत में| यह एक बहुत दिलचस्प विज्ञान है; अत्यंत रोचक, और आकर्षक| आपको इस खोज में गहरा जाना है|
इसी तरह, शनि ग्रह तिल के बीजों से जुड़ा है| यह कौओं और आपके दांतों से जुड़ा है| यह सब बहुत दिलचस्प है, मैं कह रहा हूँ, बहुत ही रोचक|
आपने तितली प्रभाव के बारे में सुना होगा| एक तितली दक्षिण अमरीका के बरसात के जंगलों में अपने पंख फड़फड़ा रही हो तो उसका असर चीन के बादलों पर होता है| कैसे एक तितली की हलचल से चीन में असर होता है, बहुत ही दिलचस्प!
इसी लिए संस्कृत में कहावत है, “यत पिंड तत् ब्रम्हाण्ड”| अर्थात, जो कुछ भी ब्रम्हाण्ड है वो एक छोटे से अंश में भी है| आपका शरीर एक बहुत छोटा ब्रम्हाण्ड है, क्योंकि वह उस से जुड़ा हुआ है एक बीज कोष के रूप में| आप एक द्वीप नहीं हैं| आप समाज से जुड़े हैं और न सिर्फ समाज से, बल्कि पूरे विश्व से जुड़े हैं|
बिना आपके जुडना चाहे भी आप जुड़े हुए हैं| आप इस ग्रह के हर व्यक्ति से जुड़े हैं, चाहे आपको यह एहसास हो या नहीं, इसका कोई फर्क नहीं पड़ता| आप पहले से ही जुड़े हैं|
प्रश्न: गुरूजी, कृपया अविद्याऔरमायाकासिद्धांतबताइए?

श्रीश्रीरविशंकर :मायामानेवोजोनापाजासके, अंग्रेजीकाशब्द Measure संस्कृतकेशब्दमायासेबनाहै| “मियतेअन्यइतिमाया”| मियतेमतलबनापना, सबकुछजोनापाजासकताहैवोमायाहै| पंच तत्वनापेजासकतेहैं : धरती, जल, अग्नि, वायु, आकाश| येसबकोनापाजासकताहै, इसलिएयेसंसारजोपांचतत्वोंसेमिलकरबनाहै, मायाहैक्योंकिइसेनापाजासकताहै|
क्यानापानहींजासकता? करूणा, प्यारइन्हेंनापानहींजासकता| आपयेनहींकहसकतेकियेव्यक्तितीनऔंसप्यारहैऔरयेव्यक्तिपांचऔंसप्यारहै| सत्यकोनापानहींजासकता, सुन्दरताकोनापानहींजासकता, आपनहींकहसकतेकियेनारीतीनईकाईसुन्दरहैऔरयेनारीपांचईकाईसुन्दरहै| सुन्दरताकोनापनहींसकते| प्यार, सुन्दरता, करूणा, सत्य, शुद्धता, ईमानदारी; आत्माकेयेसबगुणनापेनहींजासकते, इसलिएयेसबमायानहींहैं| येमहेश्वरहैं -आत्माकीप्रकृति| मायाकाअर्थउनसबसेभीहैजोबदलरहाहैऔरजिसेनापाजासकताहै; औरनापबदलताहैइसलिएमायाकाएकअर्थहैसंसारमेंसबकुछबदलरहाहै|औरदूसराअर्थहैसंसारमेंसबकोनापाजासकताहै| औरवोजोनहींबदलरहाऔरजिसेनापानहींजासकतावोहैआत्मा, ब्रह्मनयासर्वव्यापकशक्ति|
अविद्याकाअर्थहैइनबदलनेवाली, नापनेवालीचीजोंकाअध्ययन| दोबातहैं, विद्याऔरअविद्या| विद्यामतलबआत्माकाअध्ययनऔरअविद्यामतलबसंसारकाछोटीवस्तुओंकाअध्ययन|
प्रश्न: गुरुजी, मोक्षक्याहै? लोगइसेक्योंपानाचाहतेहैंऔरलोगकिससेमोक्षपानाचाहतेहैं?
श्रीश्री रविशंकर :सोचियेअगरआप१०घंटेसेएककुर्सीपरबैठेहैं, औरआपकोआज्ञादीगयीहैकिआपकोकुर्सीसेनहींउठनाहै, आपकहतेहो,कृपया मुझेउठनेदीजिये, मेरेपैरसोगएहैं,कृपया मुझेउन्हेंउठानेदीजिये, आपऐसाकहेंगेयानहीं? येमोक्षपानाहै| आपबच्चोंसेपूछिएजिसदिनउनकीपरीक्षाख़त्महोतीहैउन्हेंकैसालगताहै? वे घरआतेहैं, किताबेंसोफेपरफ़ेंकदेतेहैंऔरसोफेपरलेटकरआरामसेटीवीदेखतेहैं|जबआपपूछतेहोकिकैसालगरहाहै? वे कहतेहैं, ” ओह, मुक्तिमिलगयी, होगयीपरीक्षाख़त्म!”
मोक्षमतलबएकअहसाह, “मेराकामहोगया, जोकरनाथावोपूराहोगया, कामख़त्म !” पूर्णसंतुष्टि; पूर्णआज़ादी; करनेकोऔरकुछनहीं, कुछकरनेकीमजबूरीनहीं| मुझेजोचाहिएथा, मैंनेपालिया| अबमैंमुक्तहूँ|” मोक्षसदैवबंधनसेजुड़ाहोताहै| जबकोईबंधनहै, तबउसबंधनसेमुक्तिहीमोक्षहै| हमअपनेस्वयंकेविचारोंकीवजहसेपैदाहोतेहैं, अपनीइच्छाओंकीवजहसे, अपनीकामनाओं, अपने द्वेष रागकीवजहसे| जबराग – द्वेषकीभावनाएं, इच्छाएंचलीजातीहैंतबआपअन्दरसेएकआजादीमहसूसकरतेहैं, एकसादगी! सबनेअपनेजीवनकालमेंकभीनकभीमोक्षकाअनुभवकियाहै, कहींनकहींकभीनकभी| लेकिनजबयेज़िन्दगीकीएकस्थिरसच्चाईबनजाताहैतबआपकीपूरीऊर्जाहीबदलजातीहैऔरफिरकुछभीआपकोपरेशाननहींकरता| कोईभीआपकीमुस्कराहटआपसेछीननहींसकता, कोईभीआपकोकुछभीकरकेआपकोबदलनहींसकता, कोईभीआपकेबटननहींदबासकता| क्याआपसमझरहेहैंकिमैंक्याकहरहाहूँ? दबानेकेलिएकोईबटनबचताहीनहीं, वरनाज़िन्दगीमेंछोटीछोटीबातोंसेहमारेबटनदबतेरहतेहैं, एकछोटीसीचीज़कहींगलतहुईऔरबस!
प्रश्न : गुरूजी, मेरापुरुषमित्रबहुतईर्ष्यालुहै, मैंउसेसांसलेनेकीकला (पार्ट१) कोर्समेंलेगयीऔरवह पुनःबहुतईर्ष्यालुहोगया| एकरातकेबादउसनेमुझेमारा| मैंउससेदूरचलीगयीऔर१महीनेतकउससेबातनहींकी, अबवह कहताहैकिरोज़क्रियाकरनेकेबादवह बदलगयाहै, अबवह यहाँमौनकीकला (पार्ट२) कोर्सकेलिएभीआयाहुआहै, ऐसालगताहैकिवह बदलगयाहै, वह चाहताहैकिमैंउसकोएकमौकाऔरदूं, मुझेक्याकरनाचाहिए?
श्रीश्री रविशंकर :हाँ, बिलकुलआपकोउसेएकऔरमौकादेनाचाहिए, औरहाँ, इसकोर्ससेनिश्चितरूपसेउसमेंबदलावआयाहोगा| देखिये, अच्छाईहरएककेअन्दरछुपीहोतीहै| तनावऔरअनभिज्ञताकी वजहसेवह दबीरहतीहै| तोयहाँ, इसकमरेमेंजोखाली और खोखला है, औरबाकीकेध्यानसेहमउसअच्छाईकोबाहरनिकालतेहैं, वोखिलतीहै, फलती-फूलतीहै|
प्रश्न: मैंअपनेपिताकोउनकेनकारात्मकसंवेदनाओसेनिपटनेमेंकैसेमददकरसकताहूँ? औरक्योंकिमैंउनकेसाथकामकरताहूँतोकार्य-स्थलपरउनकीअव्यवस्थाकोकैसेसम्भालूँ?
श्रीश्रीरविशंकर :यहमुश्किलकार्यहै| अलगअलगपीढ़ियोंकाकामकरनेकाअलगतरीकाहोताहै| आपकोबहुतधैर्यसेकामलेनाहोगा, औरउनसेबातकरनेमेंकौशलदिखानाहोगा| कभीकभीपुरानी पीढ़ीकेलिएकार्यकोसौंपनाबहुतमुश्किलहोताहै, वेकार्यकीनिपुणतामेंइतनाज्यादाविश्वासकरतेहैंकिसबकार्यखुदहीकरनाचाहतेहैं| औरयेनयीपीढ़ीकेलिएएकमुद्दाबनजाताहै| इसलिएआपएककामकरो, जबभीवोनकारात्मकभावमेंआयेंआपचुपचापवहांसेहटजाओ| उनसेबहसमतकरो, बहससेकुछनहींहोगा, भलेहीआपजोकहरहेहोवोठीकहीक्योंनहो, वे उसकोनहींमानेंगे| येमुश्किलतोहै, लेकिनआपकुशलतासेउनकेसामनेअपनेविचाररखो| आपकोऐसेमें कौशलकीआवश्यकताहोगीऔरमौनसभीप्रकारकेकौशलकीजननीहै| देखिये, जबआपमुझसेपूछतेहैं, “मुझेयहाँआकर३दिनतकमौनक्योंरखनाचाहिएगुरुजी, उससेक्यालाभहोगा, मुझेबातकरनेदीजिये”| जबआपमौनमेंहोतेहैंतबसभी प्रकारकेकौशलों को पोषण प्राप्त होता है और उनमें निखार आ जाता है|
प्रश्न: प्रत्यक्षीकरणकेपीछेक्यारहस्यहै? जबमेंध्यानमेंबैठताहूँ, मेरासिरआगेकीओरझुकजाताहैऔर शरीरभी, क्यायेठीकहैयाहमेंऐसाहोनेसेरोकनाचाहिएऔर सीधाबैठनाचाहिए?
श्रीश्री रविशंकर :हमसीधेबैठतेहैंओरफिरसबछोड़देतेहैं, ध्यानमेंअगरआपकासिर नीचेकीओरआताहैयाशरीरआगेकीओरझुकजाताहैतोकोईगलतबातनहीं, येअच्छीबातहै|
अब, मैंउसकोप्रत्यक्षयाप्रकटकैसेकरूँ? जबआपअपनीआकांक्षा, अपनीमन्शाप्रकटकरतेहैं, तबवोनिश्चितरूपसेप्रत्यक्षहोतीहै| एकइरादाऔरउसपरथोडासाध्यान, बसवोप्रत्यक्षरूपमेंआजातीहैI इसकोसंकल्पकहतेहैं| आपअपनेजीवनमेंक्याचाहतेहैं? अपनेमन मेंसाफ़सोचलीजियेओरउसपरथोडाध्यानदीजिये, उसकोपकड़केरखनेयाउसकेलिएलालायितहोनेकीआवश्यकतानहीं| आपकीकोईआकांक्षाहै, बसउसकोछोड़दीजियेविश्रामकरें, वोपूरीहोजाएगी| आकांक्षाऔरइच्छामेंफर्कहै, इच्छाकाअर्थहैकिउसआकांक्षाकोपकड़केरखना| मानलीजियेआपकोयहाँसेगोटेंबर्ग जानाहो, औरआपकहतेरहे, “मुझेगोटेंबर्ग जानाहै, जानाहै, जानाहै”| जबआपइतनीप्रबलउत्कंठासेगाडीचलाएंगेतबआपगोटेंबर्गनहींकहींऔरहीपहुँचजायेंगे| लेकिनअगरआपवहांजानेकाइरादारखतेहैं, मैंगोटेंबर्गजारहाहूँऔरबस; आपगाडीचलाएंगेआपइधरउधरकहींरुकेंगेफिरगाडीचलाएंगेऔरआपपहुँचजायेंगे| येमन्शाहै, औरइच्छालगातारउसकेबारेमेंसोचतेरहनाहै, औरउससेकेवलनिराशाहीहाथलगतीहै|
प्रश्न: जबआपपासहोतेहैंतबइतनीअलगअलगभावनाएंक्योंहोतीहैं? मैंएकहीसमयमेंशांतऔरअधीर, स्नेहीऔरईर्ष्यालुमहसूसकरताहूँ|
श्रीश्रीरविशंकर:बसयेहीहै, मानवजीवनभावनाओंकाऊपरनीचेचलनेवालाखेलहै, येसारीभावनाएंआतीहैं| जबआपकीभावनाएंऊपरकीओरउठतीहै, आपसकारात्मकमहसूसकरतेहैंऔरजबनीचेकीओरजातीहैंआपनकारात्मकमहसूसकरतेहैं, लेकिनयेअच्छीबातहैकिआपकोपताचलताहैकिवे सबआरहीहैंऔरजारहीहैं| आपसिर्फसाक्षीभावसेउनकोदेखतेरहिये|

प्रश्न: हमसिर्फयोजनायेंबनानेऔरबातेंकरनेकेबजायखुदकोउन्हेंकार्यान्वितकरनेमेंकैसेलगायें?
श्री श्री रविशंकर: अच्छीबातहै, आपमार्गदर्शकहैं, मार्गदिखाइए| एकमार्गदर्शक, एकनेताकार्यकरनाचाहताहैइसलिएउठिएऔरकाममेंलगजाइये, सबकोसाथलेकरचलिए, लोगोंसेउसटोलीमेंजुड़नेकोकहिये| अगरवे नहींजुड़ते, तबआपअकेलेहीचलनाशुरूकरदीजिये| येहमारीनीतिहोनीचाहिए, हमसबसेआगेबढनेकोकहेंऔरआगेबढ़जायें, लेकिनमानलीजियेकोईभीनहींआताआपकेसाथ, तोभीचिंतानहींकरें, आपउसपथकोछोडेंनहीं, अकेलेआगेबढ़तेरहें| तबअगरआपअचानकपीछेमुडकरदेखेंगेतोपाएंगेकिबहुतसेलोगआपकेसाथचलरहेहोंगे|

प्रश्न: कृपया कर्मकेसिद्धांतपरप्रकाशडालें, हमकहाँइसकेबारेमेंऔरगूढतासेपढ़सकतेहैं?
श्री श्री रविशंकर: अबकर्ममतलबक्या ? आपनेअबतककर्मकेबारेमेंइतनाकुछसुनाहै, कर्मकाअसलीअर्थहैकार्य| कार्यकोतीनप्रकारमेंबांटाजासकताहै, भूतकाल, वर्तमानएवंभविष्य| भूतकालकेकार्यमतलबविचारयाछाप, भविष्यकेकार्यभीविचारहीहैंऔरवर्तमानकेकार्यकर्महैंजोअबपरिणामदेतेहैं| क्याआपसमझरहेहैंजोमैंकहरहाहूँ| तोकर्मकाअर्थहैभूतकालकेछापजोबिलकुलवैसीहीपरिस्तिथिभविष्यमेंआपकेसामनेलायेंगेऔरवोभविष्यकेकर्मबनजायेंगे, औरवर्तमानमेंजोआपकररहेहैंवोआपकेमनमस्तिष्कमेंएकछापछोड़रहाहैऔरवोआपकेकर्मबनतेजारहेहैं| अगरआपसच्चे साधक की अंतरंग वार्ता नामकीपुस्तकदेखेंगेतोपाएंगेकिमैंनेसबसेपहलेपन्नेपरकर्मकेबारेमेंहीलिखाहै| कैसेकुछकर्महोतेहैंजिन्हेंहमबदलसकतेहैं, औरकुछछाप-विचारजिन्हेंहमबदलनहींसकतेऔरजिन्हेंआपकोभोगनाहीपड़ताहै| मैंआपकोएकसाधारणसाउदाहरणदेताहूँ, कितनेलोगोकोसुबहउठतेकेसाथकॉफी पीनेकीआदतहै? आपमेंसेकितनेहैकिअगरवोसुबहउठकरकॉफीनपियेंतोसिरदर्दहोनेलगताहै? ( बहुतसेलोगोंनेहाथउठाया ), देखियेयेकॉफी कर्महै, क्योंकिआप कॉफी पीतेचलेआरहेहैंइसलिएउसनेआपकेमन मेंएकछापबनालीहै| औरअगरएकदिनआपकॉफीनहींपीतेतोआपके सिर मेंदर्दहोनेलगताहै, येकॉफी कर्महै| अबइससेनिकलनेकेदोतरीकेहैं, एकतोयेकिआपकॉफीपीतेरहेंऔर सिर दर्दसेबचेरहें, औरयाफिरआपउसकोरोकेंऔरकहेंकिठीकहै| सिर दर्दहोताहैतोहोनेदो, औरआपउससेआगेनिकलजायें, तो२-३दिनतकवोदर्दकरेगाऔरफिरवोदर्दख़त्महोजायेगाक्योंकिकर्महमेशासमयसेबंधाहोताहै| मानलीजियेआपकाकिसीदुर्घटनाकाकर्महै, तोवोभीसमय-बद्धहै, जैसेहीवोसमयनिकलजायेगा, वोकर्मभीचलाजायेगा| जैसेकीकॉफी नपीनेसेआपकोसुबहसिर दर्दहुआ, वोदर्दकुछघंटोतकरहा|फिरआपनेपानीपीलिया, कुछखालियाऔरकुछऔरकामकरलियाऔरवोदर्दसमाप्तहोगया, आपसमझरहेहैं? येकर्मकेबारेमेंबतानेकाएकदमसटीकउदाहरणहै|
ऐसेहीजीवनमें, सालकेएकनिश्चितसमयपरआपकोबेचैनीमहसूसहोतीहै, याआपकुछभीकरतेहोआपकोख़ुशीनहींमिलती| एकनिश्चितसमयपरआपप्रसन्नमहसूसकरतेहोचाहेआपकुछभीकार्यक्योंनाकररहेहो| ऐसाआपकेसाथभीहोताहैयानहीं? अगरआपध्यानदेंगेतोसालमेंकिसीएकखाससमयपर, भलेहीफरवरी,दिसंबर,जनवरी, याकिसीभीसमय, किसीएकहफ्ते, महीने, यापखवाड़ेमेंआपनिराशामहसूसकरतेहैं| औरतभीअचानककिसीएकसमयपरआपबहुतउल्लासितमहसूसकरतेहैं, क्योंकिमन, समयऔरकर्मसबजुड़ेहुएहैं| तोऐसेसमयमेंक्याकरें? ऐसाकहतेहैंकिइसबातकोजानलेनेमात्रसेआपउसबातसेऊपरउठजातेहैं|” अच्छा, येफरवरीकामहीनाआगया, इसमहीनेहरसालमेरेसाथऐसाहोताहै, कोईबातनहीं, मैंइससेभीपारनिकलजाऊँगा,चलोमैंऔरध्यान, सत्संगकरताहूँ, गाताहूँ”| योगकरनेसे, ज्ञानचर्चाकरनेसे, इनसबसेआपकीऊर्जाशक्तिबदलजातीहै, येसबसमयसेऊपरहैइसलिएहीइनको सच्चीदौलतकहाजाताहैक्योंकियेआपकोसमय, आकाशऔरकर्मसेपारलेजातीहै| इसलिएसाधनासेकर्मघटतेहैं, समयकानकारात्मकप्रभावकटजाताहैऔरआपकीआत्माऊपरउठतीहै, इसलिएहीइसकोसाधनाकहतेहैं, लेकिनबातयेहैकिआपइसेउससमयकरनानहींचाहते| जबआपकोइसकीसबसेज्यादाज़रूरतहैतबहीआपइसकोनहींकरनाचाहरहेहोतेहैं, येबहुतजटिलहै| येऐसाहीहैकिकोईबीमारहोऔरकहेकिमैंदवाईनहींलेनाचाहता, किसीकोठण्डलगरहीहोऔरआपउनसेकहेंकियेगरमजाकेटलेलो, येबहुतअच्छीहैऔरवोकहेकिनहींमैंइसकोनहींलूँगाक्योंकिमुझेबहुतठण्डलगरहीहै| अबआपउसकोक्याकहसकतेहोऐसेमें? येभीबिलकुलवैसाहीहै, जबहमेंइसकीसबसेज्यादाज़रूरतहोतीहैतबहमारामनइसकाविरोधकरनेलगताहै, इसलिएहमारामनहमारासबसेअच्छादोस्तऔरसबसेबड़ादुश्मनभीहै| आपकाकोईदुश्मनबाहरनहींहै, वोयहाँपरहीहै, इसलिएअपनेमनकोअपनाअच्छादोस्तबनाइयेऔरइसलिएहीहमसबयहाँबैठकरउसे निखार रहेहैं|
प्रश्न: मैंइसपथपरपिछले१०सालसेभीज्यादासेहूँऔरमैंइससेबहुतप्रसन्नहूँ| सिर्फसोचताहूँकिऐसेबाधाओं काक्याकरेंजोलम्बेसमयकेलिएटिकतेहुए नज़रआतेहैं? मेरीनिचलेचक्रकीऊर्जाशक्तिकमहै, क्याकोईरास्ताहैजिससेपरिस्तिथियाँबेहतरहोजायें?
श्री श्री रविशंकर: हाँ, बिलकुल| अगरआपखुशहैंतोचीज़ेंसभीसहीदिशामेंहीचलरहीहैं| औरनिचलेचक्रकोऔरअधिकसक्रियकरनेकीचिंतामतकरो| आपउसकोऔरअधिकसक्रियक्योंकरनाचाहतेहैं? उसकोऐसेहीरहनेदें, प्रकृति उसकाध्यानस्वयंरखलेगी|
प्रश्न : हमआर्टऑफ़लिविंगमेंजोभीकरतेहैं, क्याउसकाउद्देश्यजागृतहोनाऔरज्ञानप्राप्तकरनाहैयासिर्फबेहतरमहसूसकरनाहै? व्यक्तिगतरूपसेमैंजागृतहोनाचाहताहूँI
श्रीश्रीरविशंकर:देखियेयेएकमहासागरकेजैसाहै, यहाँसबकुछउपलब्धहै| अगरआपकेवलसमुद्रकेकिनारेचलनाचाहतेहैंतोआपकास्वागतहै, अगरआपगहरेमेंउतरनाचाहतेहैंऔरतेलढूँढनाचाहतेहैंतोवोभीयहाँमौजूदहै| येपथसागरकेजैसाहै, आपयहाँसेनमकलेजासकतेहैं, तेललेजासकतेहैं, मछलीपकड़सकतेहैं, औरआपयहाँसैंकड़ोकामकरसकतेहैं| निश्चितरूपसेज्ञानप्राप्तकरनातोथालीमेंसजाहुआहै, औरमुझेख़ुशीहैकिआपवोपानाचाहतेहैं| मैंचाहताहूँकि लोगउसकोपानेकेलिएआगेआयें, मुझेबहुतअच्छालगायह जानकरकिआपकोवोचाहिए, आपयहाँमात्रकिसीप्रकारकेसुकूनकेलिएनहींआयेहैं, येअच्छीबातहै| आइयेहमेंबहुतसेकार्यकरनेहैं|

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