प्रेम व दुख पर ओशो के 10 वचन

1. दुनिया का सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग। जिन्दगी में आप जो करना चाहते है वो जरूर कीजिये, ये मत सोचिये कि लोग क्या कहेंगे। क्योंकि लोग तो तब भी कुछ कहते है, जब आप कुछ नहीं करते। असली सवाल यह है की भीतर तुम क्या हो? अगर भीतर गलत हो, तो तुम जो भी करोगे, वह गलत ही होगा, अगर तुम भीतर सही हो, तो तुम जो भी करोगे, वह सही साबित होगा।
2. तुम जितने लोगो से प्यार करना चाहते हो आप कर सकते हो – इसका मतलब यह नहीं है की एक दिन आप दिवालिया हो जाओगे, और आप को यह घोषित करना होगा की “अब मेरे पास कोई प्यार नहीं..जहा तक
प्यार का संबंध है आप कभी दिवालिया नहीं हो सकते।’
3. जीवन से प्रेम करो, और अधिक खुश रहो। जब तुम एकदम प्रसन्न होते हो, संभावना तभी होती है, वरना नहीं। कारण यह है कि दुख तुम्हें बंद कर देता है, सुख तुम्हें खोलता है। सुखी इंसान जीवन में कुछ भी कर सकता है।
4. लोग कहते हैं कि प्यार अंधा है क्योंकि वह नहीं जानते कि प्यार क्या है। मैं तुम्हे कहता हूँ कि सिर्फ प्यार की आंखें है। प्यार के बिना सब कुछ अंधा है।
5. बिना प्यार के इंसान बस एक शरीर है, एक मंदिर जिसमे देवता नहीं होते। प्यार के साथ देवता आ जाते है, मंदिर फिर और खाली नहीं रहता है।
6. एक प्रसन्न व्यक्ति तो एक फूल की तरह है। उसे ऐसा वरदान मिला हुआ है कि वह सारी दुनिया को आशीर्वाद दे सकता है। वह ऐसे वरदान से संपन्न है कि खुलने की जुर्रत कर सकता है। उसके लिए खुलने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सभी कुछ कितना अच्छा है कितना मित्रतापूर्ण है।
7. भूल भी ठीक की तरफ ले जाने का मार्ग है। इसलिए भूल करने से डरना नहीं चाहिये, नहीं तो कोई आदमी ठीक तक कभी पहुँचता ही नहीं। भूल करने से जो डरता है वह भूल मे ही रह जाता है। खूब दिल खोल कर भूल करनी चाहिये। एक ही बात ध्यान रखनी चहिये की एक भूल दुबारा ना हो।
8. ‘मैं’ से भागने की कोशिश मत करना। उससे भागना हो ही नहीं सकता, क्योंकि भागने में भी वह साथ ही है। उससे भागना नहीं है बल्कि समग्र शक्ति से उसमे प्रवेश करना है। खुद की अंहता में जो जितना गहरा होता जाता है उतना ही पाता है कि अंहता की कोई वास्तविक सत्ता है ही नहीं।
9. आत्मज्ञान एक समझ है कि यही सबकुछ है, यही बिलकुल सही है, बस यही है। आत्मज्ञान कोई उप्लब्धि नही है। यह ये जानना है कि ना कुछ पाना है और ना कहीं जाना है।
10. दुख पर ध्यान दोगे तो हमेशा दुखी रहोगे सुख पर ध्यान देना शुरू करो, दरअसल तुम जिस पर ध्यान देते हो वह चीज सक्रिय हो जाती है। एक बात याद रखो कि मानवता पर रोग हावी रहा है, निरोग्य नहीं। और इसका भी एक कारण है। असल में स्वस्थ व्यक्ित जिंदगी का मजा लेने में इतना व्यस्त रहता है कि वह दूसरों पर हावी होने की फिक्र ही नहीं करता।