नास्तिक के मुख में विष्णु नहीं
ईश्वर व्यापक सब जगह, सब में रहा समाय |
मुख में नास्तिक के नहीं, दीनों में दरसाय॥
एक बार को बात है कि एक कीर्तन मण्डली मुकामा घाट के गंगा तट से एक नौका में बैठकर गंगा पार एक कीर्तन हेतु जा रही थी। उसी नौका में कुछ नास्तिक व्यक्ति भी सवार थे। जब नौका चलने लगी तो कीर्तन मण्डली का एक व्यक्ति हाथ में चूना तम्बाकू रखकर मलने लगा। इतने में नास्तिक व्यक्तियों में से एक व्यक्ति ने उस चूना तम्बाकू रगड़ने वाले व्यक्ति से पूछा कि आप लोग कहाँ जा रहे हो? उसने उत्तर दिया हम पास के गाँव में कीर्तन करने जा रहे हैं। फिर नास्तिक ने पूछा किसका कीर्तन करोगे?
उसने उत्तर दिया–विष्णु भगवान का कीर्तन करेंगे। नास्तिक ने पूछा-विष्णु कौन हैं और कहाँ रहते हैं? आस्तिक व्यक्ति ने उत्तर दिया–विष्णु भगवान का ही नाम है और वह सब जगह उपस्थित रहते हैं। वह जल, थल, नभ, पर्वत आदि सब जगह उपस्थित रहते हैं। इतना कहकर उसने तम्बाकू चूने को रगड़कर फॉॅक लिया। कुछ देर के बाद तम्बाकू खाने वाले ने जल में थूकना चाहा तो नास्तिक बोला -ऐसा मत करो क्योंकि तुम्हारा विष्णु भगवान तो जल में उपस्थित हैं। फिर क्या तुम उसके ऊपर थूकोगे? वह व्यक्ति बेचारा मुँह को बाँधें बैठा रहा । नाव अब तक किनारे पहुँच चुकी थी। नाव से उतरकर तम्बाकू खाने वाले व्यक्ति ने जमीन पर थूकना चाहा तो नास्तिक ने उससे कहा भाई तुम्हारा विष्णु तो पृथ्वी पर भी मौजूद है। क्या तुम विष्णु पर थूकोगे। तुम्हारा विष्णु तो सब जगह उपस्थित है, इसलिए तुम कहीं भी थूक नहीं सकते।
वह तम्बाकू खाने वाला व्यक्ति उस नास्तिक की बात सुनकर असहाय सा अपना मुँह बाँधें चुपचाप खड़ा रहा। इतने में भगवान की कृपा से नास्तिक ने अपना मुँह खोलकर जभाई ली तो उस आस्तिक व्यक्ति ने नास्तिक के खुले हुए मुख में अपना मुँह का थूक भर दिया। वह नास्तिक व्यक्ति क्रोध में भरकर उससे बोला- तुमने ऐसा क्यों किया? इस पर आस्तिक ने उत्तर दिया, तुम नास्तिक होने के कारण तुम्हारे अन्दर विष्णु भगवान नहीं हैं, इसलिए मैंने तुम्हारे मुख के अन्दर अपना थूक डाल दिया। यह सुनकर नास्तिक बहुत लज्जित हुआ और वहाँ से चलता बना।
इस कहानी का तात्पर्य यह है कि जब तक आस्तिकों द्वारा नास्तिकों को मुँह तोड़ उत्तर न दिया जाये, तब तक वे बाज नहीं आते।