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नवीन शिक्षितों की नवीन दृष्टि – new vision of newly educated anmol kahani

नवीन शिक्षितों की नवीन दृष्टि 

दो अनादि सब ग्रन्थ बदल, न हूँ शिक्षा का रोग। 
 समयानुकूल हों ग्रन्थ सब, कहते हैं कुछ लोग॥ 

सन्‌ 1944 की बात है कि दिसम्बर माह के तीसरे सप्ताह में श्री काशीजी में अखिल भारतवर्षीय श्री रूपकला हरिनाम यश संकीर्तन सम्मेलन का वार्षिक अधिवेशन हुआ। उसमें सम्मिलित होने के लिए मुझे भी निमंत्रण प्राप्त हुआ। मैंने उसमें भाग लिया। मैं बनारस से देहरादून एक्सप्रेस ट्रेन में बैठकर रात्रि में एक बजे पटना जक्शन पर उतरा और वहाँ से सवेरे पिलाजा घाट से पानी के जहाज में सवार हो गया। जिस समय मैं स्टीमर में ऊपर की मंजिल में गया तो वहाँ एक सज्न ने मुझसे पूछा–आप कहाँ जायेंगे?

नवीन शिक्षितों की नवीन दृष्टि - new vision of newly educated anmol kahani

 
मैंने कहा- चम्पारंन जाना है। वह सज्जन बोले -क्यों? मैंने उन्हें बताया -वहाँ एक कीर्तन सभा का आयोजन है। उसमें भाग लेने के लिए मुझे भी निमंत्रण मिला है। उन्होंने पूछा कीर्तन कया चीज होती है? मैंने बताया- कीर्तन भगवान के नाम का जाप करना ही होता है। वे बोले–अजी जाओ जी, मैंने पूछा- क्यों क्या बात है?

वे बोले- रे भाई! जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया परन्तु आप लोग अभी तक भगवान की ही टेर लगा रहे हैं?  मैंने कहा बाबू जी! भगवान के नाम की महिमा तो वेदों,  पुराणों, शास्त्रों तक में वर्णित है। वे सज्जन बोले -महोदय अब तो आपको जमाने के मुताबिक नए वेद शास्त्रों का निर्माण करना पड़ेगा। मैंने कहा बाबूजी! वेद तो अनादि हैं। वे कभी भी बदले नहीं जा सकते । 
आपका यह सोचना कि वेदादि को बदल कर जमाने के अनुसार नये वेदों की रचना करना सरासर भूल है। मेरी यह बात सुनकर उन महोदय ने  फरमाया नहीं महाराज अब तो जैसे-जैसे समय वैसे ही वैसे नए-नए वेद शास्त्र बनाने पड़ेंगे। उन बाबू साहब की बात  सुनकर कुछ देर के लिए मैंने मौन धारण कर लिया। फिर उन महोदय से उनकी आयु पूछी। उन्होंने बतायां कि मेरी  आयु 40 वर्ष है। 
मैंने फिर पूछा- आपके पिता श्री की आयु कितनी है? उन्होंने बताया वे 85 वर्ष के हैं। मैंने सट से मुँह बनाकर  राम-राम कहा और यह सुनकर उन बाबू ने माथे पर बल  डालकर कहामेरे पिता श्री की आयु सुनकर आपने अपना मुँह क्यों बनाया? मैंने कहा-श्रीमान जी क्या आप अपने  85 वर्ष के पुराने पिताश्री के बदलकर नये जमाने के अनुसार  नये पिता का चुनाव करना पसंद करेंगे। 
मेरी यह दलील सुनकर बाबूजी गुस्से से भरकर बोले -यह तो आप हमारी  तोहीन कर रहे हैं। मैंने उन्हें समझाया कि इसमें तौहीन की  क्या बात है? जब आप अनादि काल के वेदों को बदलने की बात कर रहे हैं तो अपने 85 वर्ष के पिताश्री को बदल कर नये जमाने के अनुसार नया बाप बदलने में क्या परेशानी  है? मेरी इस बात को सुनकर बाबू साहब को चुप हो जाना पड़ा।
कहने का तात्पर्य यह है कि जो लोग पाश्चात्य सभ्यता की चका चौंध में धर्म पुराण एवं प्राचीन ग्रन्थों को तोड़ मरोड़ कर समयानुसार बनाने की बात करते हैं, वे लोग अपनी कब्र स्वयं खोद रहे हैं। ईश्वर द्वारा निर्मित सिद्धान्तों एवं नियमों को न तो कोई सूरमा इस पृथ्वी से हटा सका है और न ही उसको समयानुसार बना सका है। ये एक अटल सिद्धान्त है कि जो वस्तु अनादि है वह हमेशा अनादि ही रहेगी। 
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