मुंह बंद रखो और मौन रहो फिर देखो होगा कैसा चमत्कार
मुंह वास्तव में बहुत-बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहीं से पहली क्रिया शुरू हुई; तुम्हारे होठों ने पहली क्रिया की। मुंह के आसपास की जगह से हर क्रिया की शुरूआत हुई : तुमने श्वास अंदर ली, तुम रोए, तुमने मां का स्तन ढूंढना शुरू किया और तुम्हारा मुंह हमेशा सतत् क्रियाशील रहा।
जब भी तुम ध्यान के लिए बैठते हो, जब भी तुम मौन होना चाहते हो, पहली बात अपना मुंह पूरी तरह से बंद करो। अगर तुम मुंह पूरी तरह से बंद करते हो, तुम्हारी जीभ तुम्हारे मुंह की तालु को छुएगी, दोनों होंठ पूरी तरह से बंद होंगे और जीभ तालु को छुएगी। इसको पूरी तरह से बंद करो, लेकिन यह तब ही हो सकेगा जब तुम उसका पालन करो, इससे पहले नहीं। तुम इसे कर सकते हो।
मुंह बंद करना बहुत बड़ा काम नहीं है। तुम एक मूर्त की तरह बैठ सकते हो, मुंह को पूरी तरह बंद किए, लेकिन यह क्रियाशीलता नहीं रोकेगा। अंदर गहरे में विचार चलते रहेंगे, और अगर विचार चल रहे हैं तो तुम होंठों पर सूक्ष्म कम्पन अनुभव कर सकते हो। दूसरे इसे देख भी न पाएं, क्योंकि वे बहुत सूक्ष्म हैं, लेकिन अगर तुम सोच रहे हो तो तुम्हारे होंठ थोड़े कम्पित होते हैं, एक बहुत सूक्ष्म कम्पनी है। जब तुम वास्तव में शिथिल होते हो, वे कम्पन रुक जाते हैं।
तुम बोल नहीं रहे हो, तुम अपने अंदर कुछ क्रिया नहीं कर रहे हो और तब सोचो मत। तुम करोगे क्या? विचार आ-जा रहे हैं। उन्हें आने और जाने दो, वह कोई समस्या नहीं है। तुम इसमें शामिल मत होना, तुम अलग दूरी बनाए रखना। तुम बस उन्हें आते-जाते देखना। तुम्हें उनसे कोई मतलब नहीं है। मुंह बंद रखो और मौन रहो। धीरे-धीरे विचार स्वयं बंद हो जाते हैं। उन्हें होने के लिए तुम्हारे सहयोग की आवश्यकता होती है।