Kabir ke Shabd
म्हारे गुरुआं ने दई सै बता, दलाली करियो लालां की।।
लाल लाल सब कोय कहे रे सब के पल्ले लाल।
आंख खोल देखा नहीं रे, इस विधि भया कंगाल।।
लाल पड़ा मैदान में रे रहा कीच लपटाय।
नुगरा ठोकर मारता रे, सुगरां ने लिया है उठाए।।
इधर से अंधा जावता रे, उधर से अंधा आए।
अंधे को अंधा मिला रे, मार्ग दे कौन बताए।।
लाली लाली सभी कहें रे, लाली लखी न जाए।
लाली लखी कबीर ने रे, लिया आवागमन निसाय।।