Kabir ke Shabd
मेरे सद्गुरु हैं रँगरेज, चुन्दडिया मेरी रंग डारी।
साही रंग छुड़ाय के जी, दियो मजिठो रंग।
धोयाँ तैं उतरै नहीं रे, दिन दिन होत सुरंग।।
भाव के कुंड नेह के जल में,प्रेम रंग दई बौर।
चस की चास लगाए के रे, खूब रँगी झकाझोर।।
सद्गुरु ने चुनड़ी रँगी मेरे सद्गुरु चतुर सुजान।
सब कुछ उनपे वार दूँ रे तन मन धन और प्राण।।
कह कबीर रँगरेज गुरुजी, मुझ पे भए दयाल।
शीतल चुनड़ी ओढ़ के रे, मैं भई आज निहाल।।