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मेरे मन बस गयो री – Mere Mann bss gayi Re Kabir Ke Shabad

Mere mann mein bss gyo ri

कबीर के शब्द

मेरे मन बस गयो री, सुंदर सजन साँवरो।
तन में मन मे और नैनन में, रोम -२ में छायो।
ज्यों काहू को बसे भुजंगम, एसो अमल चढायो।।
शकुचि लाज नहीं कुल की शंका, सर्वस आप लुटायो।
जब से सुनी प्रेम की बतियाँ, दूजो नजर नहीं आयो।।
जित देखूं तित साहब दरसै, दूजो नजर नहीं आयो।
इन नैनन में रमयो रमय्यो, जग को जगह नहीं पायो।।
अचरज कैसी बात सखी री, अब मोहे कौन बतावै।
विरह समन्द का मिले समन्द में, अब कुछ कहा न जावै।
जल में गई नून की मूरत, हो गई सर्वस पानी।
यो हर की छवि हेर हेर कर, हेरन हार हिरानी।।
गूंगे ने एक सपना देखा किस विद बोलै बाणी।
सैन करे और मग्न जीव में, जिन जानी तिन जानी।।
जिन देखे महबूब गुमानी, ते भी भए गुमानी।
मैं जाती थी लाहे कारण, उलटी आप बिकानी।
को समझे ये सुख की बतियाँ, समझों से नहीं छानी।
नित्यानन्द अब कासे कहिये, पीव की अकथ कहानी।।
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