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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मैं तो ढूंढत डोलूं हे सद्गुरु प्यारे की नगरियां।
जंगल बस्ती शहर में ढूंढी, बड़ी बडी विपदा मैने झेली।
पाई नहीं मैने प्यारे नगरियां।।
पांच पच्चीस ने ऎसी बहकाई,
देके झकोले इत उत डिगाई।
मैं खाली रह गई हे, पड़के भूल भर्मिया।।
देके झकोले इत उत डिगाई।
मैं खाली रह गई हे, पड़के भूल भर्मिया।।
जप तप तीर्थ में कुछ नहीं पाया,
भेख एक ने झूठा ठेका ठाया।
कैसे दिल को रोकूँ हे, नहीं आवै सबरिया।।
भेख एक ने झूठा ठेका ठाया।
कैसे दिल को रोकूँ हे, नहीं आवै सबरिया।।
वेद कितेब मैं पढ़ी कुराना,
पाया नहीं कोय चिन्ह ठिकाना।
चारों दिशा दौड़ाई हे, मैं अपनी नजरियां।।
पाया नहीं कोय चिन्ह ठिकाना।
चारों दिशा दौड़ाई हे, मैं अपनी नजरियां।।
चलती चलती दिनोद में आई,
गुरु ताराचंद की हुई शरणाई,
उनसे कंवर ने पाई हे, निज घर की खबरियां।।
गुरु ताराचंद की हुई शरणाई,
उनसे कंवर ने पाई हे, निज घर की खबरियां।।