Kabir ke Shabd
मैं चरणों का दास गुरु जी मेरे मन का विकार मिटादे।
कर सेवक पे मेहर फेर गुरु,अपना देश दिखादे।।
मैं तो गन्दे जल का नाला था,मुझे मिला बीज समंदर में।
मुझको भी गुरु दिखलाद, इस घट घट के मन्दिर में।
निकल पडूँ मैं अंदर से, मेरी शक्ति बाहर दिखादे।
कदे न नाम लिया सद्गुरु का, भजी पराई वाणी जी
साबत रात बजावै तुम्बा, गावैं काल कहानी जी
दिन में रात पिछाणी गुरू जी, अनुभव मेरा जगादे।।
सद्गुरुजी का देशदीवाना, जहांपर करता मौज जमाना
सन्त शिरोमणि राह जावै जब, मिटजा आना जाना।
मेरी सूरत वहां पहुंचादे।।
हे नीच कल्प अवतार धार के फेर कलयुग में आया।
परम् छह सौ मस्ताना, मेरी अमर बनादी काया।।।
आत्म में परमात्म सद्गुरु, इतना ए नाम दिलादे।।