माया
खुद माया में फँस रहा, फिर काहे पछताये।
यदि तू उसको त्याग दे, तो मुक्ति पठ पाये॥
एक सांसारिक व्यक्ति समर्थ रामदास जी के पास जाकर बोला – महाराज! मुझे माया ने ऐसा जकड़ लिया है कि उससे छूटना असम्भव सा हो गया है। आप कृपा करके उससे मुक्ति का उपाय बताइये। स्वामी जी ने अपने मन में सोचा कि उपदेश देने से इस पर शीघ्र प्रभाव नहीं पड़ेगा, इसलिए इसे प्रत्यक्ष प्रमाण देना चाहिए।
अत: स्वामी रामदास जी एक किले की प्राचीर पर चढ़ गये तथा उस व्यक्ति को भी अपने पास बुला लिया। प्राचीर से लगा हुआ एक पीपल का पेड़ था ओर नीचे गहरी खाई थी। स्वामी जी ने वायु में अपना दुपट्टा लहरा कर पीपल के वृक्ष पर फेंक दिया और उस व्यक्ति को उस दुपट्टा को पेड़ से उतार कर लाने की आज्ञा दी। वह व्यक्ति गुरुजी की आज्ञा मानकर पेड़ पर चढ़ गया। जब उस व्यक्ति ने दुपद्दे को पकड़ लिया तो स्वामी रामदासजी ने अपनी छड़ी द्वारा उसके पैर अपनी ओर खींच लिए। वह व्यक्ति दुपट्टा पकड़ कर लटक गया और स्वामी जी से अपनी रक्षा हेतु चिल्लाने लगा कि मेरी रक्षा कीजिए नहीं तो मैं मर जाऊँगा।
स्वामी जी ने कहा -रोते क्यों हो? दुपट्टे को छोड़कर मोश्न पद प्राप्त कर लो। वह व्यक्ति बोला – महाराज दुपट्टा तो छोड़ा नहीं जाता। इस पर स्वामी जी ने उस व्यक्ति से पूछा – अब तुम यह बताओ कि दुपट्टा तुम्हें पकड़े है या तुमने दुपट्टे को पकड़ रखा है। वह बोला – मैंने ही टुपट्टे को पकड़ रखा है।
स्वामी जी ने उससे कहा -इसी प्रकार माया को तूने पकड़ रखा है न कि माया ने तुझे पकड़ा है। यदि तू इस समय दुपट्टे को छोड़ देता है तो तत्काल तेरी मुक्ति हो सकती है। उसी प्रकार माया रूपी दुपट्टे को छोड़ दे तो तुझे तत्काल ही आत्मबोध से जीवन मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रायः जो लोग यह कहते हैं कि क्या करें भाई! माया ऐसी प्रबल वस्तु है कि उसने हमें फाँस रखा है। इससे जीव को छुटकारा नहीं मिल सकता क्योंकि माया ने तुम्हे नहीं फँसाया है अपितु तुम स्वयं ही माया के चक्कर में फँसे हुए हो। जैसे मकड़ी को कोई फँसाता नहीं है बल्कि वह स्वयं ही अपने जाल में फँस जाती है। तोते को बॉस की नली ने नहीं फँसाया है, वह स्वयं समझ रहा है कि मैं उसमें फँस गया हूँ। बन्दर के हाथ को मिट्टी के बर्तन ने नहीं पकड़ रखा अपितु वह चनों के लोभ में पड़कर वह हाथ की मुट्ठी को खोल नहीं पाता है और वह समझता है कि इस पात्र ने मेरे हाथ को पकड़ रखा है।
इसी प्रकार किसी भी प्राणी को माया ने स्वयं नहीं फसाया। प्राणी स्वयं धन, सम्पत्ति, परिवार के लोभ में पढ़कर माया को त्याग नहीं पाता है और समझता हैं कि माया ने मुझे बांध रखा है।