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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मनै इबकै बचाले मेरी माँ, बटेऊ आया लेवन नै।
पाँच कोठरी दस दरवाजे, इसी महल के माह।
लहूकती छिपती मैं फिरूँ रे,किसी विधि बैरी छोड़ेनाह।।
सावन के दिन सोलह रहगे, तीजां के दिन चार।
जी कर रहा सै झूलन ने, सखियाँ में सै घणा प्यार।।
हाथ जोड़ के कह बटेऊ, सुनो बुढली बात।
मेरी बेटी सै घणी लाड़ली, दस दिन करदो न टाल।।
हाथ जोड़ के कह बटेऊ, सुनो बुढ़िया बात।
म्हारे गुरु का यही हुक्म है, हरगिज छोड़ेंगे नाय।।
पांच भाइयों की बहन लाड़ली, कोए न चाल्या साथ।
कह कबीर सुनो भई साधो, मलते रहगे हाथ।।