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Mandir me chori hui re hada lakhina maal

kabir

Kabir ke Shabd

मन्दिर में चोरी हुई रे, हड़ा लखीना माल।
पैड़ खोज चाल्या नहीं रे, या टूटी नहीं दीवार।।
फूंक धवन तैं रह गई रे, ठंडे पड़े अंगार।
आहरण का सांसा मिटा रे, लद गए मीत कुम्हार।।
बीन बजन तैं रह गई रे, टूटे त्रिगुण तार।
बीन बेचारी के करै, जब गए बजावनहार।।
हाथी छूटा ठाण तैं रे, कस्बे गई पुकार।
सब दरवाजे बंद पड़े रे, यो निकल गया सरदार।।
चित्रशाला सुनी पड़ी रे, उठ गए साहूकार।
दरी गलीचे न्यू पड़े रे, ज्यूँ चौपड़ पे सार।।
हाड़ जले ज्यूँ लाकडी रे, केश जले ज्यूँ घास।
जलती चिता ने देख के रे, हुआ कबीर उदास।।
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