Kabir ke Shabd
मन रे क्यूँ भुला मेरे भाई।
जन्म जन्म के क्रम भर्म तेरे, इसी जन्म मिट जाए।।
सपने के माह राजा बनगया, हाकिम हुक्म दुहाई।
भोर भयो जब लाव न लश्कर, आंख खुली सुद्ध आई।
पक्षी आए वृक्ष पै बैठे, रल मिल चोलर लाकै।
हुआ सवेरा जब अपने-२, जहां तहां उड़ जाइ रे।।
मातपिता तेरा कुटुम्ब कबीला, नाती सगा असनाई।
ये तो सब मतलब के गरजु, झूठी मान बड़ाई।।
सागर एक लहर बहु उपजै, गिने तो गिनी नस जाइ
कह कबीर सुनो भई साधो, उल्टी ए लहर समाई।।