Kabir ke Shabd
मन भजन करें जा भुला क्यूँ।।
पाँच तत्व का बना पुतला, या मूर्त बना दी ज्यूं
का त्युं।गर्भ वास में भजन कबूला, आग्या भूल की फेरी में।
बालापन हंस खेल गंवाया, जवान विषयों की घेरी में।
इस भर्मजाल कि फेरी में,
तेरा हंस बिछड़ गया ज्यूँ का त्युं।।
मानस चोला रत्न अमोला, जो जाणै सो जाणै सै।
नुगराँ ने तो पता नहीं, कोए लाल गुरू का पिछाणै सै।
सूरत निरत बखानै सै
तूँ शब्द समझ ले ज्यूँ का त्युं।।
ये सद्गुरु की वाणी सै तूँ खूब समझ ले मन के माह।
सांस-२ में करो खोजना, उमंग बढ़ेगी तन के माह।
जाल कटै एक छन के माह।
मनै झूठ नहीं सद्गुरु की सूँ।।
जिनके चास शब्द की पड़ रही,
वो गुरू शरण मे जा रहा सै।
रोम -२में वास करै, गुरू रामदास के न्यारा सै।
सुंदर दास न्यू गा रहा सै,
यो होंठ जीभ फिसला दिया मूँह।।