मां दुर्गा के नौ रूप और मंत्र / Maa Durga Ke Navroop aur Mantra
मां शैलपुत्री का स्वरूप: पार्वती और हेमवती इन्हीं के नाम हैं। माँ का वाहन वृषभ है और इनके दाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का फूल है।
माँ शैलपुत्री का मंत्र (Mata Shailputri Mantra): माँ शैलपुत्री की पूजा इस मंत्र के उच्चारण से की जानी चाहिए-
देवी ब्रह्मचारिणी: ‘ब्रहाचारिणी’ माँ पार्वती के जीवन काल का वो समय था जब वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही दुर्गा जी का दूसरा अवतार (2nd Form of Navdurga): कठोर तप और ध्यान की देवी “ब्रह्मचारिणी” माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं। इनकी उपासना नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है।
थी। तपस्या के प्रथम चरण में उन्होंने केवल फलों का सेवन किया फिर बेल पत्र और अंत में निराहार रहकर कई वर्षो तक तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है।
माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र (Mata Brahmacharini Mantra): माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना के लिए यह मंत्र है-
दुर्गा जी का चंद्रघंटा अवतार :
दुर्गा जी का तीसरा अवतार चंद्रघंटा हैं। देवी के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होने के कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। दअपने मस्तक पर घंटे के आकार के अर्धचन्द्र को धारण करने के कारण माँ “चंद्रघंटा” नाम से पुकारी जाती हैं। अपने वाहन सिंह पर सवार माँ का यह स्वरुप युद्ध व दुष्टों का नाश करने के लिए तत्पर रहता है। चंद्रघंटा को स्वर की देवी भी कहा जाता है।
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप :
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप बहुत ही अद्भुत है। इनके दस हाथ हैं जिनमें इन्होंने शंख, कमल, धनुष-बाण, तलवार, कमंडल, त्रिशूल, गदा आदि शस्त्र धारण कर रखे हैं। इनके माथे पर स्वर्णिम घंटे के आकार का चांद बना हुआ है और इनके गले में सफेद फूलों की माला है। चंद्रघंटा की सवारी सिंह है।
चंद्रघंटा देवी की मान्यता :
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप सदा ही युद्ध के लिए उद्यत रहने वाला दिखाई देता है। माना जाता है कि इनके घंटे की तेज व भयानक ध्वनि से दानव, अत्याचारी और राक्षस डरते हैं। देवी चंद्रघंटा की साधन करने वालों को अलौकिक सुख प्राप्त होता है तथा दिव्य ध्वनि सुनाई देती है।
माँ चंद्रघंटा का मंत्र (Mata Chandraghanta Mantra):
स्वर्ण के समान उज्जवल वर्ण वाली माँ चंद्रघंटा की पूजा का यह मंत्र है-
माता दुर्गा का चौथा अवतार (4th Form of Navdurga): अपनी मंद हंसी से ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली “माँ कूष्मांडा” देवी दुर्गा का चौथा स्वरुप हैं । माँ कुष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। मान्यतानुसार सिंह पर सवार माँ कूष्मांडा सूर्यलोक में वास करती हैं, जो क्षमता किसी अन्य देवी देवता में नहीं है। माँ कूष्मांडा अष्टभुजा धारी हैं और अस्त्र- शस्त्र के साथ माँ के एक हाथ में अमृत कलश भी है।
माँ कूष्मांडा का मंत्र (Mata Kushmanda Mantra): देवी कूष्मांडा की उपासना इस मंत्र के उच्चारण से की जाती है-
दुर्गा जी का पांचवां अवतार- स्कंदमाता :
नवरात्र के पांचवे दिन माँ दुर्गा के पांचवे स्वरुप भगवान स्कन्द की माता अर्थात “माँ स्कंदमाता” की उपासना की जाती है। कुमार कार्तिकेय को ही “भगवान स्कन्द” के नाम से जाना जाता है।
स्कंदमाता का स्वरूप :
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं जिनमें से माता ने अपने दो हाथों में कमल का फूल पकड़ा हुआ है। उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती हैं तथा एक हाथ से उन्होंने गोद में बैठे अपने पुत्र स्कंद को पकड़ा हुआ है। इनका वाहन सिंह है।
दुर्गा जी का ममता स्वरूप हैं स्कंदमाता :
कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति मना जाता है तथा माता को अपने पुत्र स्कंद से अत्यधिक प्रेम है। जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ता है माता अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश करती हैं। स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र के साथ जोड़ना बहुत अच्छा लगता है। इसलिए इन्हें स्नेह और ममता की देवी माना जाता है।
माँ स्कंदमाता का मंत्र (Mata Skandmata Mantra): माँ स्कंदमाता का वाहन सिंह है। इस मंत्र के उच्चारण के साथ माँ की आराधना की जाती है-
दुर्गा जी का कात्यायनी अवतार (6th Form of Navdurga) :
कात्यायनी देवी दुर्गा जी का छठा अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है।
कात्यायनी देवी का स्वरूप :
दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है।
क्यों पड़ा देवी का नाम कात्यायनी :
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।
देवी कात्यायनी का मंत्र (Devi Katyayani Mantra) :
सरलता से अपने भक्तों की इच्छा पूरी करने वाली माँ कात्यायनी का उपासना मंत्र है-
दुर्गा जी का सातवां स्वरूप- कालरात्रि (7th Form of Navdurga) :
दुर्गा जी का सातवां स्वरूप कालरात्रि है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहते हैं।
देवी कालरात्रि का भयानक स्वरूप :
देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ है जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ(गधा) है।
कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा :
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा।
शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया।
इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
माँ कालरात्रि का मंत्र (Mata Kaalratri Mantra) :
नवरात्र के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना इस मंत्र से की जा सकती है :–
दुर्गा जी महागौरी अवतार (8th Form of Navdurga) :
शंख और चन्द्र के समान अत्यंत श्वेत वर्ण धारी “माँ महागौरी” माँ दुर्गा का आठवां स्वरुप हैं। नवरात्रि के आठवें दिन देवी महागौरा की पूजा की जाती है। यह शिव जी की अर्धांगिनी है। कठोर तपस्या के बाद देवी ने शिव जी को अपने पति के रुप में प्राप्त किया था।
महागौरा के रुप में दुर्गा जी का स्वरुप :
देवी महागौरा के शरीर बहुत गोरा है। महागौरा के वस्त्र और अभुषण श्वेत होने के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है। महागौरा की चार भुजाएं है जिनमें से उनके दो हाथों में डमरु और त्रिशुल है तथा अन्य दो हाथ अभय और वर मुद्रा में है। इनका वाहन गाय है। इनके महागौरा नाम पड़ने की कथा कुछ इस प्रकार है।
माँ महागौरी का मंत्र (Maa Mahagauri Mantra) :
महागौरी की उपासना का मंत्र है :–
दुर्गा जी का सिद्धिदात्री अवतार (9th Form of Navdurga) :
सर्व सिद्धियों की दाता “माँ सिद्धिदात्री” देवी दुर्गा का नौवां व अंतिम स्वरुप हैं। नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा और कन्या पूजन के साथ ही नवरात्रों का समापन होता है।
सिद्धिदात्रि का स्वरुप :
हिन्दू धर्म के पुराणों में बताया गया है कि देवी सिद्धिदात्री के चार हाथ है जिनमें वह शंख, गदा, कमल का फूल तथा चक्र धारण करे रहती हैं।
यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता है। इनका वाहन सिंह है। देवीपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी की शक्तियों और महिमाओं का बखान किया गया है।
सिद्धियों की स्वामिनी हैं सिद्धिदात्री :
पुराणों के अनुसार देवी सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं। देवी पुराण के मुताबिक सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही शिव जी ने सिद्धियों की प्राप्ति की थी।
शिव जी का आधा शरीर नर और आधा शरीर नारी का इन्हीं की कृपा से प्राप्त हुआ था। इसलिए शिव जी विश्व में अर्द्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। माना जाता है कि देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक व परलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है।
माँ सिद्धिदात्री का मंत्र (Mata Siddhidatri Mantra): इनका उपासना मंत्र है-