जीवन-मुर्गों की रूसी-कथा
एक प्राचीन रूसी कथा है।
एक बड़े टोकरे में बहुत से मुर्गे आपस में लड़ रहे थे। नीचे वाला मुर्गा खुली हवा में सांस लेने के लिए अपने ऊपर वाले को गिराकर ऊपर आने के लिए फड़फड़ाता है। सब भूख-प्यास से व्याकुल हैं। इतने में कसाई छुरी लेकर आ जाता है। एक एक मुर्गे की गर्दन पकड़कर टोकरे से बाहर खींचकर काटकर वापस फेंकता जाता है। सफाई कर पंख आदि बाहर फेंकता जाता है।कटे हुए मुर्गों के शरीर से गर्म लहू की धार फूटती है।
भीतर के अन्य जिंदा मुर्गे अपने पेट की आग बुझाने के लिए उस पर टूट पड़ते है। इनकी जिंदा चोंचों की छीना-झपटी में मरा कटा मुर्गे का सिर गेंद की तरह उछलता लुढ़कता है। कसाई लगातार टोकरे के मुर्गे काटता जाता है। टोकरे के भीतर की खाद्य सामग्री में हिस्सा बांटने वालों की संख्या भी घटती है। इस खुशी में बाकी बचे मुर्गो के बीच से एकाध की बांग भी सुनायी पड़ती है। अंत में टोकरा सारे कटे मुर्गो सेे भर जाता है। चारों ओर खामोशी है, कोई झगड़ा या शोर नहीं है।
इस रूसी कथा का नाम है-जीवन।
ऐसा जीवन है। सब यहां मृत्यु की प्रतीक्षा में है। प्रतिपल किसी की गर्दन कट जाती है। लेकिन जिनकी गर्दन अभी तक नहीं कटी है, वे संघर्षरत हैं, वे प्रतिस्पर्धा में जुटे हैं। जितने दिन, जितने क्षण उनके हाथ में है, उनका उन्हें उपयोग कर लेना है। इस उपयोग का एक ही अर्थ है-किसी तरह अपने जीवन को सुरक्षित कर लेना है, जो कि सुरक्षित हो ही नहीं सकता।
सफलता सदैव खुशी, शांति व तृप्ति नहीं लाती है। सफलता हमारी प्रतिष्ठा जरुर बढ़ा देती है। सफलता के साथ शान्ति के आने का कोई नियम नहीं है।