Search

laagi thare paya ram lijo mahri bandgi

kabir

Kabir ke Shabd

लागी थारे पायां राम, लीजो म्हारी बन्दगी।
चारों दिशा चेत के चित्तियाँ, चिंता हेरन मुरारी।
हमको ठौर कहूँ ना पाई, ताकी शरण तुम्हारी।।
भँव मारो भँव तार गुसाइयाँ, हम कुत्ते दरबारी।
अब कहाँ जाएं खाएं प्रसादी, पाया टूक हज़ारी।।
सुख सागर विच किया बसेरा, फिर क्यों दुःख सतावै।
परमानन्द तेज घन स्वामी, करो कृपा जो भावै।।
जिनकी बाँह गहो हित करके, उनको कौन डिगावै।
शरण आए और जाए निराशा, तेरा वृद्ध लजावै।।
हमको एक आधार तुम्हारा, और आधार न कोई।
जो जग ऊपर धरूँ धारणा, चलता दिखै सोई।।
खिले फूल सोई कुम्हलावै, फेर रह न खुशबोई।
अब तो लग्न लगी साहब से, जो कुछ हो सो होइ।।
पर्दा खोल बोल टुक हंसके, हे महबूब गुमानी।
घट पट खोल मिले तुम जिनसे, अमर हुए वे प्राणी।।
नित्यानन्द को दर्शन दीजो,दिल महरम दिल जानी।
तन मन धन सब करूँ वारणा, मैं दीदार दीवानी।।
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply