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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
क्यूं सोया नींद भर्म की, कर चेत मुसाफिर उठ।
जितना था तेरा पूंजी पल्ला, लिया ठगां नै लूट।
ले के पूंजी खो दई सारी, गई हिय की फूट।
पांच पचीस दस चार महल के फिर लिए चारों कूट।
जागेगा जब पछतावैगा, भरी सब्र की घूंट।
सद्गुरु जगावे जाग दीवाने, पकड़ नाम की मूठ।
शब्द सिरोही मार ताण कै, जा किला भर्म का टूट।
शब्द सिरोही मार ताण कै, जा किला भर्म का टूट।
गुरु रामसिंह आए तनै जगावै, मतना समझे झूठ।
ताराचंद सिर हाथ गुरु का, यम भाजेगा रूठ।