Search

कौन मिलावै मोहे जोगिया

kabir

Kabir ke Shabd

कौन मिलावै मोहे जोगिया,
जोगिया बिन रह्यो ए ना जाए।।
मैं हिरणी पिया पारधी री, मारै शब्द के बाणा।
जिसके लागै सो तन जाणै, दूजे नै के जान।।
दर्श दीवानी पीव की हे, रटती मैं पिया हे पिया।
पिया मिले तो लखुंगी हे, तज दूंगी सहज जिया।।
पिया की मारी मैं हुई वैरागन, लोग कहें पिंड रोग।
सो सो लाँघन मैं किया रे, राम मिलन के योग।।
कह कबीर सुनो हे घोघड़, तन मन धन बिसराए।
थारी प्रीत के कारनै हे, फेर मिलेंगे आए।।
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply