कर्म और आनंद
एक बार एक मुनि तीर्थ यात्रा पर निकले, रास्ते में एक गांव आया। मुनि बहुत थक चुके थे। उन्होंने गांव में ही एक खेत के नजदीक बरगद के पेड़ के नीचे शरण ली। वहीं कुछ मजदूर पत्थर से खम्भे बना रहे थे।
मुनि ने पूछा….
‘‘यह क्या बन रहा है?’’
‘‘यह क्या बन रहा है?’’
एक मजदूर ने कहा….
‘‘पत्थर काट रहा हूँ।’’
मुनि ने फिर पूछा….
‘‘वह तो दिखाई दे रहा है लेकिन यहां बनेगा क्या?’’
‘‘वह तो दिखाई दे रहा है लेकिन यहां बनेगा क्या?’’
दूसरे मजदूर ने कहा….
‘‘मालूम नहीं।’’
‘‘मालूम नहीं।’’
मुनि आगे चल दिए। उन्हें एक और मजदूर मिला, उन्होंने उससे यही पूछा….
‘‘यहां क्या बनेगा?’’
‘‘यहां क्या बनेगा?’’
उस मजदूर ने भी निराशा से भरा उत्तर दिया, मुनी ने यही सवाल एक और मजदूर से किया…..
उसने कहा…..
उसने कहा…..
‘‘मुनिवर यहां मंदिर बनेगा। इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था। गांव के लोगों को बाहर दूसरे गांव में त्यौहार मनाने जाना पड़ता था। मैं अपने हुनर से यहां मंदिर बना रहा हूँ। जब मैं पत्थरों पर छैनी चलाता हूँ तो मुझे मंदिर की घंटी की आवाज सुनाई देती है। मैं अपने इसी काम में मग्न रहता हूँ।“
मुनि उस मजदूर के इस नजरिए से अभिभूत हो गए और उसे आशीर्वाद दिया।
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दोस्तों!! जीवन आप किस तरीके से जीते हैं यह आपका रवैया तय करता है।
काम को यदि आनंद के साथ किया जाए तो हमेशा परमानंद की अनुभूति होती है। उस मजदूर को छैनी की आवाज में भी मंदिर की घंटी सुनाई दे रही थी। यानी उसका नजरिया महान था जिस कारण वह इस काम को कर पाया।
इसलिए कहते हैं कि खुशी आपके काम में नहीं, काम के प्रति आपके नजरिए में है.