Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
काहे वैर करे इंसान, तुं है दो दिन का महमान।
काहे झूठी दिखावे शान, तुं है दो दिन का महमान।।
चार दिन की काया है, ये चार दिन की माया है।
कोठी और बंगलों की चार दिन की छाया है।
तेरा घर होगा श्मशान।।
जिसमे तुं रहता है, ये देश बेगाना है।
एक दिन आए ऐसा, इसे छोड़ के जाना है।
सही मंजिल को पहचान।।
काहे को गुमान करे, काहे को अकड़ता है।
दूसरों से काहे, तुं यूँही झगड़ता है।
क्यों बनता है रे शैतान।।