भुद्ध वाणी – झेन फकीर इक्कू
एक मित्र ने पूछा है, कि आप पाखंड का विरोध करते हैं लेकिन यहां लोग आपकी कुर्सी के सामने सिर झुका रहे हैं! सरासर पाखंड हो रहा है! तो फिर इस पाखंड में और मंदिर की प्रतिमा के सामने झुकने में क्या भेद है?
मस्तिष्क का प्रश्न है। अगर कोई मंदिर की प्रतिमा में भी इतने ही भाव से झुक रहा है जितने भाव से यहां, तो वहां भी पाखंड नहीं है। पाखंड प्रतिमा के सामने झुकने में नहीं है, पाखंड तो तब है जब कि सिर्फ मस्तिष्क झुक रहा है और हृदय में कोई अनुभव नहीं हो रहा है। पत्थर की भी पूजा प्रेमपूर्ण हो तो पत्थर परमात्मा है। और परमात्मा की भी पूजा पत्थर की तरह हो तो सब पाखंड है।
झेन फकीर इक्कू एक मंदिर में ठहरा। रात है सर्द। इतनी सर्द, इतनी ठंड पड़ रही है कि बाहर बर्फ गिर रही है। गरीब फकीर के पास एक ही कंबल है, वह उसकी सर्दी को नहीं मिटा पा रहा है। वह उठा कि मंदिर में कुछ लकड़ी तलाश लाए। और लकड़ी तो न मिली लेकिन बुद्ध की प्रतिमाएं थीं, वे लकड़ी की थीं। कई प्रतिमाएं थीं, तो वह एक प्रतिमा उठा लाया, आग जला ली। मंदिर में जली आग, लकड़ी की चट चटाक, अचानक रोशनी का होना, पुजारी जग गया। भागा हुआ अया। आगबबूला हो गया। आंखों पर भरोसा न आया कि एक फकीर, जिसको लोग सिद्धपुरुष समझते हैं, वह भगवान की प्रतिमा जला रहा है! इससे बड़ी और नास्तिकता और बड़ा कुफ्र क्या होगा?
ऐसे आदमी को मंदिर में टिकने देना खतरनाक था। क्योंकि पुजारी आखिर सोएगा। यह और मूर्तियां जला दे! बहुमूल्य चंदन की मूर्तियां हैं। इक्कू को धक्के मार कर उसने बाहर निकाल दिया। इक्कू ने बहुत कहा कि बर्फ पड़ रही है, और भगवान को बाहर निकाल रहे हो! लकड़ी की मूर्तियां बचा रहे हो और मुझे जीवित बुद्ध को बाहर निकाल रहे हो! लेकिन उसने बिलकुल नहीं सुना, उसने कहा तुम पागल हो। तुम और बुद्ध! धक्के देकर दरवाजा बंद कर लिया।
सुबह जब उसने दरवाजा खोला मंदिर का तो देखा कि इक्कू बाहर बैठा है और जो मील का पत्थर है उस पर फूल चढ़ा कर आराधना में झुका है और उसकी आंखों से आनंद के आंसू बह रहे हैं। पुजारी ने जाकर हिलाया और कहा कि तुम मुझे और परेशान न करो। तुम मुझे और उलझाओ मत, ऊहापोह में मत डालो!