कदर दान मानस के आगे ,सारी कदर छटें सै।
मुर्ख मूढ़ अनाड़ी ने,कुछ भी ना खबर पटे सै।।
एक नगरी में लोभी लालां एक बनिया रहा करे था।
मुंजी इतना सर्दी गर्मी,तन पे सहा करे था।।
मुंजी इतना सर्दी गर्मी,तन पे सहा करे था।।
दमड़ी कारण चमड़ी दे दे ,न्यू विपदा सहा करे था।
किस विध से धनवान बनु,न्यू मन में कहा करे था।
हाय-2 धनवान बनु,मुंजी दिन रात रटे सै।।
किस विध से धनवान बनु,न्यू मन में कहा करे था।
हाय-2 धनवान बनु,मुंजी दिन रात रटे सै।।
एक रोज उस बनिए धोरे,एक महात्मा आया।
न्यू बोला कर जमा अमानत,पारस पथरी लाया।
सत्संग करने जाऊंगा,मेरी निर्मल होजा काया।।
न्यू बोला कर जमा अमानत,पारस पथरी लाया।
सत्संग करने जाऊंगा,मेरी निर्मल होजा काया।।
छः महीने में वापस आऊं,वादा ठीक बताया।
सत्संग के करने तैं लालां मन की मैल कटे सै।
शर्त कृ मंजूर सेठ ने,पारस पथरी रख ली।।
सत्संग के करने तैं लालां मन की मैल कटे सै।
शर्त कृ मंजूर सेठ ने,पारस पथरी रख ली।।
आवन आली मिति बुझ के बीच बही के लिख ली।
तब गद्दी के दई सिरहाने,तकिए नीचे ढक ली।
इस ते मै धनवान बनूँगा,मन में पक्की तक ली।।
तब गद्दी के दई सिरहाने,तकिए नीचे ढक ली।
इस ते मै धनवान बनूँगा,मन में पक्की तक ली।।
बुझ्न चाला भाव लोहे का,घट रहा सै के बढ़े सै।
एक बे बुझा दो बे बुझा सो सो बे बुझवाया।
तेजी खा गया भाव लोहे का दिन दिन हुआ सवाया।।
एक बे बुझा दो बे बुझा सो सो बे बुझवाया।
तेजी खा गया भाव लोहे का दिन दिन हुआ सवाया।।
लोभी लालां लोभ के कारण,नहीं खरीदने पाया।
छः महीने गए बीत लोट के वही महात्मा आया।
न्यू बोला दे मेरी अमानत,इब क्यु दूर हटे सै।।
छः महीने गए बीत लोट के वही महात्मा आया।
न्यू बोला दे मेरी अमानत,इब क्यु दूर हटे सै।।
साधु रूप विधाता ने तने दी मानस की काया।
पारस रूपी जिंदगानी तू करार क्र के लाया।।
पारस रूपी जिंदगानी तू करार क्र के लाया।।
सोना रूपी हर की भक्ति कदे ना करने पाया।
लोभी लालां जीव को समझो,वृथा जन्म गंवाया।
कह मनोहर् लाल भजन ते आवागमन मिटे सै।।
लोभी लालां जीव को समझो,वृथा जन्म गंवाया।
कह मनोहर् लाल भजन ते आवागमन मिटे सै।।