मन नेकी कर ले, दो दिन का मेहमान।
जोरू लड़का कुटुम्ब कबीला, दो दिन का तन मन का मेला जी।
अंत काल उठ चलै अकेला, तज माया मोह अभिमान।।
कहाँ से आया कहाँ जाएगा, तन छूटे मन कहाँ समाएगा
आखिर तुझ को कौन कहेगा, गुरु बिन आत्मज्ञान।।
आखिर तुझ को कौन कहेगा, गुरु बिन आत्मज्ञान।।
यहाँ कौन है तेरा सच्चा साईं, झूठी है ये जग असनाई।
कौन ठिकाना तेरा भाई, कहां बस्ती कहां गाम।।
कौन ठिकाना तेरा भाई, कहां बस्ती कहां गाम।।
रहट माल कूप जल भरता, कभी भरे कभी रीता फिरता।
एक बार तूँ जन्मे मरता, क्यों करता अभिमान।।
एक बार तूँ जन्मे मरता, क्यों करता अभिमान।।
लख चौरासी लगी त्रासा, ऊंच नीच घर करता बासा।
कह कबीर जब छूटै वासा, लेलो हरि का नाम।।
कह कबीर जब छूटै वासा, लेलो हरि का नाम।।