Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
यहाँ से चले गए कोतवाल, करके काया की कोतवाली।
आया था एक तार जरुरी, उसमें लिखा था हुक्म हजूरी।।
सुनते ही कर ली मंजूरी, कूच किया तत्काल।।
बदली हो गई और जिलों की , छोड़ चला सब कोट किलों की
एक वस्तु अनमोल गंवाई, सारा माल लुटा दिया,
पर गया हाथ से खाली।।
संग में जाए न किसी का भाई, छोड़ चला है संग सिपाही।
करले रे मन हुशियारी, तूँ क्यों होता बेचैन रे,
तेरी घड़ी टले नहीं टाली।।
वहाँ के गए फेर नहीं आए, राही राह का पता न पाए।
कह कबीर दिखलाई माया, क्या खूब कही है कमाली।
पर म्हारी राह निराली।।