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या चादर हुई पुरानी रे,कुछ सोच समझ अभिमानी रे-Kabir Ke Shabd-yaa chaadar hui puraani re,kuchh soch samajh abhimaani re।।

SANT KABIR (Inspirational Biographies for Children) (Hindi Edition ...
Kabir Ke Shabd 

कबीर के शब्द
या चादर हुई पुरानी रे,कुछ सोच समझ अभिमानी रे।।

अजब जुलाहे नै चादर बीनी, सूत कर्म की तानी।
सूरत निरत को भरनो दीन्हो, तब सब के मन मानी रे।।


मैले दाग पड़े पापन कै, हो विषयों में लिपटानी रे।
ज्ञान का साबुन लाया न धोया, सत्संगत के पानी रे।।

भई खराब आब गई सारी,लोभ मोह में सानी रे।
ऐसे ओढ़त उम्र गंवा दी, भली बुरी ना जानी रे।।

शंका मानी दादूजी अपने, ये वस्तु बेगानी।
कह कबीर इसे राख यत्न से, ये फेर हाथ नहीं आनी।।
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