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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तुम पलक उघाड़ो दीनानाथ,
मैं हाजिर नाजिर कब की खड़ी।
साहू से तो दुश्मन हो गए, लागूं कड़ी-२।
तुम बिन मेरा कोई नहीं है, नैया अटक रही।।
मन की हूल बदन में लागै,सुकूं खड़ी-२।
पल पल हो गई बरस बराबर, मुश्किल घड़ी-२।
हार हमेल सभी सुख त्यागे मोतियन जड़ी लड़ी।
ज्ञान बाण हृदय में लाग्या, प्रेम कटारी रङ्क रही।।
मेहर करी मेरे सन्मुख हो गए,धुर की कलम अड़ी।
बार बार मीरा जस गावै, धन धन आज घड़ी।।