Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
थारी काया कमड़ती नाड़ी को कोई नखरों
थारे तनपै खेलै काल, शीश पै सगरो रे भाई।।
थारी पंख-२में पाप, झूठ को झगड़ो।
तुं चल सतगुरु के देश, मिटे थारो रगड़ो रे भाई।।
तुं चल सतगुरु के देश, मिटे थारो रगड़ो रे भाई।।
तूँ तन पे अंगिया पहर, शाल ओढो गुरु गम को।
तूँ ज्ञान घूंघटो काढ़,ओढनो शर्म को रे भाई।।
तूँ ज्ञान घूंघटो काढ़,ओढनो शर्म को रे भाई।।
तुं करमां को पाटों घाल, सूरत संग रमरो।
तुं सिर साहब नै सौंप,नाम नै सुमरो रे भाई।।
तुं सिर साहब नै सौंप,नाम नै सुमरो रे भाई।।
तनै कहूँ साचली बात, मुंडो काहे फेरो।
ये सत्त सत्त कहे कबीर, कोए नर सगरो रे भाई।।
ये सत्त सत्त कहे कबीर, कोए नर सगरो रे भाई।।