Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तेरी काया नगर में हीरा हे, हेरां तैं पावै।
तेरे गल का हार जंजीरा हे, कोए सतगुरु सुलझावै।।
नान्हा हो के चालिए रे, जैसी नान्ही दूब।
सभी घास जल जाएंगें,न जले दूब।
फेर सामन भी आवेगा।।
काया पुतलियां चाम की रे, रही पवन में फूल।
काठ यत्न के खुल गए रे, अंत धूल की धूल।
धूल में के मिल जावैगा।।
जैसे बर्तन कांच के रे, ऐसी मनुज तेरी देह।
ठेस लागजा टूट अंत मे,देह हो जागी खेह।
फेर चौरासी में जावैगा।।
जैसे झपना रैन का रे, ऐसी मनुष तेरी जात।
सूरज का प्रकाश हुऐ जब,खत्म होएगी रात।
जीवन तेरा ऐसे जाएगा।।
ऐसी करनी सभी करो रे, जैसी करी कबीर।
तान दुपट्टा योग का, जिनै राख्या अमर शरीर।
फूल में फूल समावेगा।।