Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तेरी बीती उमरिया झुकी रे कमरिया, ओ बन्दे अब तो, तुं सत्संग में आजा।
हो जाते-२ हरि गुण गाज्या।।
गई रे जवानी तेरी आया बुढापा, खो दिया रे बन्दे तनै तेरा आपा।
दर्द हुआ कफ वायु ने घेरा, तेरी देही में रोग घना छाग्या।।
हाथ और पांव का ढीला रे चाम, आंख ओर दांत गए, बनता ना काम।
छोहरे डांट मारै तेरे पै, पड़ा-२ रोट तुं खाजा।।
काम क्रोध ने त्याग रे बन्दे, नींद में सोवै जाग रे बन्दे।
सतगुरु धोरै या जिंदगी चुनड़िया, तुं भक्ति रंग में रँगाजा।।
हरि के घर का आवै बुलावा, उसके आगे चालै ना दावा।
सुरेश मन्दोले अड़े एक दिन, उठ जा तेरा जनाजा।।