Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तेरा कर्म सुधर जा रे, तुं नूर में नूर मिला ले।
भँव सागर तर जा रे, हरिनाम की आश लगाले।।
सिर पर भारी वजन है तेरे, काची तेरी गगरी।
दुर्बल है नश्वर तन तेरा, लाम्बी तेरी डगरी।
दुर्बल है नश्वर तन तेरा, लाम्बी तेरी डगरी।
कदे पैर फिसलजा रे, ठीक तुं इसे जंचा ले।।
पानी का तुं बना बुलबुला,झूठा तेरा अनुमान सै।
माया का तुं बना झुनझुना, झूठा ये अभिमान सै।
पानी का तुं बना बुलबुला,झूठा तेरा अनुमान सै।
माया का तुं बना झुनझुना, झूठा ये अभिमान सै।
चौकें से बिखर जा रे, चाहे कितने बंध लगाले।।
कहता है तुं जिसको मस्ती, वो ही तेरी भूल है।
भंवरा नहीं अजगर है तुं,खाई सदा पग धूल है।
भंवरा नहीं अजगर है तुं,खाई सदा पग धूल है।
तेरा सब विष झड़जा रे, तुं बून्द अमिरस पा ले।।
करता है तुं तीर्थ व्रत, फिर भी तेरा मन मैला।
बाहर से तो सुंदर दीखै, अंदर मन का थैला।
मल सकल डिगरजा रे, हरिनाम की झाड़ू ठाले।।
करता है तुं तीर्थ व्रत, फिर भी तेरा मन मैला।
बाहर से तो सुंदर दीखै, अंदर मन का थैला।
मल सकल डिगरजा रे, हरिनाम की झाड़ू ठाले।।
जिसको कहता सच्चा है रे, वो तो है एक सपना।
जपता नहीं नाम को, मुख में तेरे रसना।
हो रामकिशन तर जा रे, आज तुं कर्म कमा ले।।
जपता नहीं नाम को, मुख में तेरे रसना।
हो रामकिशन तर जा रे, आज तुं कर्म कमा ले।।