Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तनै हरि नाम ना गाया, और गाया क्या है बावले।
ऐरन की चोरी करे और,करे सुई को दान रे।
कोठे चढ़के देखन लाग्या, केतिक दूर विमान रे।।
पतिव्रता भूखी मरै ओर, वैश्या चाबे पान रे।
पतिव्रता तो बैठी, वा वैश्या करे गुमान रे।।
पतिव्रता तो बैठी, वा वैश्या करे गुमान रे।।
हाथी छूट डार से, लश्कर पड़ी पुकार रे।
नो दरवाजे बंद पड़े,वो निकल गया किस पार से।।
नो दरवाजे बंद पड़े,वो निकल गया किस पार से।।
निर्बल पड़ा पहाड़ से, कोई न पूछन हार रे।
साहूकार कै कांटा चुभग्या, उड़ै पड़ गई हाहाकार रे।।
साहूकार कै कांटा चुभग्या, उड़ै पड़ गई हाहाकार रे।।
दाख पकै वैशाख में, लगे काग कै रोग रे।
रविदास कर्महीन न पावै, है सत्त पुरुष का भोग रे।।
रविदास कर्महीन न पावै, है सत्त पुरुष का भोग रे।।