Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तन सराय में जीव मुसाफिर, कहा करत उन्माद रे।
रैन बसेरा करले नै डेरा, उठ सवेरा त्याग रे।।
तन ये चोला रत्न अमोला,लगै दाग पे दाग रे।
दो दिन की गुजरान जगत में, क्यों जले वीरानी आग रे।।
कुबद्ध कांचली चढ़ी है चित्त में,हुआ मनुष्य से नाग रे।
सूझत नाहीं सजन सुख सागर, बिना प्रेम अनुराग रे।।
श्रवण शब्द बूझ सतगुरु से, पूर्ण प्रगटे भाग रे।
कह कबीर सुनो भई साधो, पाया अटल सुहाग रे।।