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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
सत्संग में सुरतां चाल, तुं अपनी नब्ज दिखा लिये।
तनै मिलजा वैद अगम का, तुं अपना रोग कटा लिये।।
सत्संग सा कोए धाम नहीं,चाहे कहीं भी घूम ले।
उड़ै बह गया की गंगा,तूँ गोता ला लिये।।
सत्संग में जाने से मिले, तनै दवाई नाम की।
नआम बिना ये आत्मदेह ना, किसे काम की।
नामदान तनै मिलजा,कुछ जतन बना लिये।।
नाम दवाई पीने से मिले,शब्द पति अन्जाया।
होजा अटल सुहाग तेरा, कटै जन्म मरण का पाया।
यो औसर अजब सुहाना, तुं फायदा ठा लिए।।
होजा अटल सुहाग तेरा, कटै जन्म मरण का पाया।
यो औसर अजब सुहाना, तुं फायदा ठा लिए।।
सन्तरूप में आ दाता, सत्संग फरमा रहे।
कोट कंगले———ना गले लगा रहे।
कर प्रतीत प्रेम गुरु के,दर्शन पा लिए।।
कोट कंगले———ना गले लगा रहे।
कर प्रतीत प्रेम गुरु के,दर्शन पा लिए।।