Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
सन्तों के आगे, कौन चीज बादशाही।।
बादशाह ने दूल्हा बन के, नो छोड़ी दस ब्याही।
सन्त दूल्हे हैं रामनाम के, लाई तो ओड़ निभाई।।
बादशाह की भरे ना तृष्णा, कर दिया मुल्क तबाही।
सन्तों के सन्तोष खजाने, कर रहे अथाह अथाई।।
बादशाह की सम्पत्ति नाशै,निष्फल जा गुमराही।
ज्यों-२ विपत पड़े सन्तों पे, त्यों त्यों बे प्रवाही।।
ज्यों-२ विपत पड़े सन्तों पे, त्यों त्यों बे प्रवाही।।
बादशाह की नोबत बाजै, पातर फिरै उमाही।
सन्तों के तो अनहद बाजै, सुन सुन मस्ती छाई।।
सन्तों के तो अनहद बाजै, सुन सुन मस्ती छाई।।
बादशाह कीड़ी के खुड़के, तोपां चर्ख चढाई।
सन्तों के तो ज्ञान सिरोही, सूत काल सिर बाही।।
सन्तों के तो ज्ञान सिरोही, सूत काल सिर बाही।।
बादशाह मन चाही करता, सन्त करें हरि चाही।
शम्भदास मता सन्तों का, साँच के लागै ना स्याही।।
शम्भदास मता सन्तों का, साँच के लागै ना स्याही।।