Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
सन्तों देखत जग बौराना।।
नेमी देखा धर्मी देखा, प्रातः करै अस्नाना।
आत्म माही पखां नहीं पुजै, उन्हें वो है ग्याना।।
बहुतक देखा पीर औलिया,पढ़े कितेब कुराणां।
कह मुरीद तक़दीर बतावै, उनमें वो है जो ग्याना।।
कह मुरीद तक़दीर बतावै, उनमें वो है जो ग्याना।।
आसन मसर बिम्ब धर बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पितृ पत्थर पूजन लागे, तीर्थ गर्भ भुलाना।।
पितृ पत्थर पूजन लागे, तीर्थ गर्भ भुलाना।।
माला पहरै टोपी पहरै,छाप तिलक अनुमाना।
साखी शब्द गावत भूले, अष्टम खबर न जाना।।
साखी शब्द गावत भूले, अष्टम खबर न जाना।।
हिंदू कह मोहे राम पियारा, तुर्क कह रहमाना।
आपस मे दोऊ लड़ लड़ मूए,मर्म न काहू जाना।।
आपस मे दोऊ लड़ लड़ मूए,मर्म न काहू जाना।।
कह कबीर सुनो भई साधो, ये सब मर्म भुलाना।
केतिक कहूँ कहा नहीं मानै, सहजै सब मे समाना।।
केतिक कहूँ कहा नहीं मानै, सहजै सब मे समाना।।