Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
सखी री पड़ी अंध के कूप, सजन घर कैसे पावे री।
काल ने रच राख्या ये डेरा, तेरे चोगर्दे करड़ा पहरा।
तुं कैसे निकल के जावै री।।
माया नई नए खेल दिखावै, बन्दर की तरह नाच नचावे।
अंत मे तुं खाली जावे री।।
जग चिड़िया रैन बसेरा है, लगा आवागमन का फेरा है।
समझ तनै कुछ न आवे री।।
कुल कुटुम्ब में क्यों भरमाई, ये तो है बादल की छाईं।
पल में हट जावे री।।
गुरु खोज जो मुक्ति चाहवै, काम क्रोध को मार भगावे।
तने शुद्ध निज घर की आवे री।।
सतगुरु ताराचंद दे ज्ञान कटारा, पकड़ो शरण तो हो निस्तारा।
जो तुं राधास्वामी गावे री।।