Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
सखी री मेरै पार लिकड़ग्या, सतगुरु नै मारा तीर री।।
लगी उचाटी मन मेरे में, व्याकुल भया शरीर री।।
या तो जानै मेरा प्रीतम प्यारा, और न जानै मेरी पीर री।
क्या करूँ मेरा वश नहीं चलता, बहे नैन से नीर री।।
मीरा के पृभु तुम्हे बिन, प्राण धरै ना धीर री।।