Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
सजन घर कैसे जाऊं हे, मेरी मैली है चुनरिया।
पाप का मैल चढ़ा है भारा, धोबिया ढूंढत छाना जग सारा।
ढूंढ रहा हे री में तो प्रेम बजरिया।।
मन पापी नै ली अंगड़ाई, विषय वासना नै खोदी खाई।
आगै चालूं कैसे हे या,ओखी है डगरिया।।
उठै तड़प में व्याकल डोलूं, सुनै ना कोए किसने बोलूं।
हंसी करें है मेरी , सहेली सगरियाँ।।
हंसी करें है मेरी , सहेली सगरियाँ।।
जब चलने की करूँ तयारी,सारे कुटुम्ब से तोड़ के यारी।
मोह पापी खींचे, मेरी पकड़ चदरिया।।
मोह पापी खींचे, मेरी पकड़ चदरिया।।
सतगुरु ताराचंद नर दया फ़रमाई, धुबिया बन के भट्टी लाई।
उनै धो दीन्ही हे, बरसे प्रेम बदरिया।।
उनै धो दीन्ही हे, बरसे प्रेम बदरिया।।