Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
सैय्या जी मैं लूटली वैराग्य ने जी।
देख सखी हे मेरे तन का ए हाल री।।
ओल्है रे आई बादली हे, बरसन लाग्या मेंह।
ठहरूँ तो भीजै मेरा कपड़ा हे, भाजूँ तो टूटै मेरा नेह।।
ठहरूँ तो भीजै मेरा कपड़ा हे, भाजूँ तो टूटै मेरा नेह।।
उरलै घाट मेरा लहंगा हे भीजै, परलै घाट मेरा चीर।
हमरी गत ऐसी बनी जी, ज्यूँ मछली बिन नीर।।
उरलै पार की लाकड़ी हे, परलै पार की आग।
मैं विरिहन ऐसे जली हे, कोयला रही ना रही राख।।
मैं विरिहन ऐसे जली हे, कोयला रही ना रही राख।।
पिहरिया गढ़ मेंढता हे, सासरिया चित्तौड़।
मीरा ने सद्गुरु मिला हे, नागर नन्द किशोर।।