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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
सद्गुरु अलख लखाया।
मन बुद्धि वाणी चाही न जानत, वेद कहत सकुचाया।
अगम अपार अथाह अगोचर, नेति नेति यही गाया।।
शिव सनकादिक ओर ब्रह्मा के, वह पृभु हाथ न आया।
व्यास वशिष्ठ विचारक हारे, कोई पार नहीं पाया।।
तिल में तेल काष्ठ में अग्नि,प्रत्येक माही समाया।
शब्द में अर्थ पदार्थ पद में, स्वर में राग सुनाया।।
बीज माही अंकुर तरु शाखा, पत्र फूल फल छाया।
त्यों आत्म में है परमात्म, ब्रह्म जीव और माया।।
कह कबीर कृपालु कृपा कर, निज स्वरूप परखाया।
जप तप योग यज्ञ व्रत पूजा, सब जंजाल छुड़ाया।।