कबीर के शब्द
रेल धर्म की चलती, कोए बैठो आ के। गाड़ी प्रेम।
ड्राइवर बैठ लिया इंजन में, धुर का तार पहुंच नंदन में।
सकल रेल जिस के बंधन में, झंडी श्वांस की हिलती।।
सद्गुरु बाबु टिकट बाटता, कोए भी लेलो नहीं नाटता।
न्यारे न्यारे सब के छांटता, होने ना पावे गलती।।
हिन्दू मुस्लिम आर्य ईसाई, नार पुरुष कोए ले लो भाई।
किशन दास ने सैन लखाई, टिकट सभी को मिलती।।