Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
रे हंसा भाई देश पुरबला जाना।
विकट बाट है राह रपटीली,कैसे करूँ पयाना।
बिन भेदी के भटक के मरियो, खोजी खोज सयाना।।
वहां की बातें अजब निराली,अटल अविचल अस्थाना।
निराकार निर्लेप विराजे, रूप रंग की खाना।।
चन्द्र चांदनी चौक सजा है,फूल खिले बहु नाना।
रिमझिम-२ मेघा बरसें, मौसम बड़ा सुहाना।।
मानक मोती लाल घनेरे,हीरों की वहां खाना।
तोल मोल कोए गिनती नाहीं, अपरम्पार खजाना।।
नूर नगरिया कोस अठारह, ता का बांध निशाना।
अखण्ड अवचा मोहन बांचा, वहां का पुरुष दिवाना।।
सतगुरु ताराचंद कह समझ कंवर ये देश नहीं बेगाना।
न कहीं आना न कहीं जाना, आके बीच समाना।।