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राम की नगरिया में काहे का ना घाटा-Kabir Ke Shabd-raam ki nagariyaa men kaahe kaa naa ghaataa,

 कबीर राम की नगरिया
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Kabir

राम की नगरिया में काहे का ना घाटा,
करमां अनुसार मिले बांटा।

कोए तो खावे हलवा पूरी,
कोए खावे जौ का आटा।

कोए तो सोवे महल अटारी,
कोए लावे तिरछा टाटा।

कोए तो ओढ़े श्याल दुशाले,
कोए ओढ़े गूदड़ पाटा।

कह कबीर सुनो भई साधो,
मने गुरु चरण चित्त डाटा।
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