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पिंजरा हुआ पुराना, पंछी पिंजरा हुआ पुराना-Kabir Ke Shabd-pinjraa huaa puraanaa, panchhi pinjraa huaa puraanaa।

KABIR KE SHABAD

कबीर पिंजरा हुआ पुराण।

पिंजरा हुआ पुराना, पंछी पिंजरा हुआ पुराना।
न जाने कब टूट ये जाए,दूर देश उड़ जाना।।
नीलगगन से ऊपर कोई, बैठा नजर गड़ाए।
सबको तुं छल सकता प्यारे, उसको न छल पाए।
मन मे कोई मैल नहीं तो, फिर कैसा घबराना।।
कोमल-२पंख तुम्हारे, मोह ने जकड़ा है।
एक उड़ान भक्ति की प्यारे, चाह कर न उड़ जाए।
सुमरन करले नाम पृभु का,भँवसागर तर जाना।।

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