Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
पाखण्ड में कुछ नाहीं रे साधो, पाखण्ड कुछ नाहीं रे।
पाखण्डिया नर भोगै चौरासी, खोज करो घट माही रे।।
चोंच पाँख बिन उड़ै मेरो हँसलो,उड़तो दीखै नहीं रे।
लाख कोस की खबर बता दे, तो भी माने नाहीं रे।।
चिता बना कै माह बड़ बैठो,जलतो दीखै नाहीं रे।
देह बदल कै जग भरमायो, तो भी मानै नाहीं रे।।
गुफा खुदा कै म्हा बड़ बैठो, बैठो दीखै नाहीं रे।
देह बदल के सिंह बन आयो, तो भी मानै नाहीं रे।।
जटा बढ़ा कै महंत बन बैठो, आंख्यां खोलै नाहीं रे।
सारी देह का अर्थ बतादे, तो भी मानै नाहीं रे।।
एक पेड़ दो पंछी बैठे, कौन गुरु कौन चेला रे।
कह कबीर सुनो भइ साधो, साँच दिया गुरु चेला रे।।